नवरात्रि के नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना
चैत्र नवरात्र हिंदू धर्म का एक विशेष पर्व है। यह त्योहार देवी दुर्गा को समर्पित है। इस दौरान साधक माता रानी के नौ रूपों की पूजा अलग-अलग दिन करते हैं और कठिन व्रत रखते हैं। नवरात्रि के नौवें दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। जैसा कि इनके नाम से ही स्पष्ट है कि मां सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी हैं। शास्त्रों के अनुसार महादेव ने भी माता सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या कर इनसे सभी आठ सिद्धियां प्राप्त की थीं। इन्हीं देवी की कृपा से ही महादेव की आधी देह देवी की हो गई थी और वे अर्धनारीश्वर कहलाए थे। नवरात्र के नौवें दिन इनकी पूजा के बाद ही नवरात्र का समापन माना जाता है।
इसके अलावा चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri 2025) में कन्या पूजन का भी बड़ा महत्व है। कन्या पूजन में कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक मानकर उनकी पूजा की जाती है। वहीं, यह अनुष्ठान इस व्रत का अहम भाग माना जाता है, तो आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि कन्या पूजन कैसे करना चाहिए?”
माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप
सिद्धिदात्री या सिद्धि दात्री हिंदू मां देवी महादेवी के नवदुर्गा (नौ रूप) पहलुओं में से नौवां और अंतिम है । उनके नाम का अर्थ इस प्रकार है: सिद्धि का अर्थ है अलौकिक शक्ति या ध्यान क्षमता, और धात्री का अर्थ है दाता या सर्वश्रेष्ठ। नवरात्रि के नौवें दिन (नवदुर्गा की नौ रातें) उनकी पूजा की जाती है; वह सभी दिव्य आकांक्षाओं को पूरा करती है। ऐसा माना जाता है कि शिव के शरीर का एक पक्ष सिद्धिदात्री का है। इसलिए, उन्हें अर्धनारीश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
वैदिक शास्त्रों के अनुसार, शिव ने इस देवी की पूजा करके सभी सिद्धियों को प्राप्त किया।सामान्य रूप से मां सिद्धिदात्री कमल पुष्प पर आसीन होती हैं, हालांकि इनका भी वाहन सिंह है। मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनकी दाहिनी ओर की पहली भुजा मेंं गदा और दूसरी भुजा में चक्र है। बांई ओर की भुजाओं में कमल और शंख है। कुछ चित्रात्मक चित्रणों में, उनके दोनों ओर गंधर्व , यक्ष , सिद्ध , असुर और देवता हैं , जिन्हें देवी को प्रणाम करते हुए दिखाया गया है।
हत्त्व शास्त्रों के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व नामक आठ सिद्धियां हैं। ये सभी सिद्धियां मां सिद्धिदात्री की आराधना से प्राप्त की जा सकती हैं। हनुमान चालीसा में भी अष्टसिद्धि नव निधि के दाता कहा गया है।
मां सिद्धिदात्री स्तोत्र
॥ ध्यान मंत्र ॥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थिताम् चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्विनीम्॥
मैं मनोवांछित लाभ प्राप्त करने के लिए, सभी तरह के मनोरथों को पूरा करने वाली, मस्तक पर अर्ध चंद्र को धारण करने वाली, कमल पुष्प पर विराजमान रहने वाली, चार भुजाओं वाली और यश प्रदान करने वाली माँ सिद्धिदात्री की, वंदना करता हूँ।
स्वर्णवर्णा निर्वाणचक्रस्थिताम् नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शंख, चक्र, गदा, पद्मधरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
सिद्धि दात्री माता के शरीर का रंग स्वर्ण धातु जैसा चमकदार है। वे हमारे निर्वाण चक्र में स्थित होती हैं और उसे मजबूत करने का कार्य करती हैं। वे माँ दुर्गा का नौवां रूप हैं जिनके तीन नेत्र हैं। उन्होंने अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा व कमल पुष्प ले रखा है। हम सभी सिद्धिदात्री माता के नाम का भजन करते हैं।
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
सिद्धिदात्री मां पीले रंग के वस्त्र धारण करती हैं। उनके मुख पर स्नेह के भाव हैं और उन्होंने नाना प्रकार के आभूषणों से अपना अलंकार किया हुआ है। उन्होंने अपने शरीर पर मंजीर, हार, केयूर, किंकिणी व रत्नों से जड़ित कुंडल धारण किये हुए हैं।
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटिं निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
मैं प्रसन्न मन के साथ माता सिद्धि दात्री की आराधना करता हूँ। उनका स्वरुप बहुत ही सुंदर, कमनीय, रमणीय व वैभव युक्त है। तीनों लोकों में उनकी पूजा की जाती है।
॥ स्तोत्र ॥
कञ्चनाभा शंखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
सिद्धिदात्री देवी की आभा से हम सभी को अभय मिलता है और हमारे भय दूर हो जाते हैं। उन्होंने अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा व कमल पुष्प ले रखे हैं और मस्तक पर मुकुट पहन रखा है जिसमें से प्रकाश निकल रहा है। उनका मुख आनंद देने वाला है और वे भगवान शिव की पत्नी हैं। मैं सिद्धिदात्री माता को नमस्कार करता हूँ।
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार भूषिताम्।
नलिस्थिताम् नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोऽस्तुते॥
मां सिद्धि दात्री ने पीले रंग के परिधान पहन रखे हैं और तरह-तरह के आभूषणों से अपना श्रृंगार किया हुआ है। वे कमल पुष्प पर विराजती हैं और उनके हाथों में भी कमल पुष्प है। मैं सिद्धिदात्री माता को प्रणाम करता हूँ।
परमानन्दमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
सिद्धिदात्री देवी हमें आनंद प्रदान करती हैं और वे ही परम सत्य व परम ब्रह्म का रूप हैं। वे सर्वशक्तिशाली व परमभक्ति का रूप हैं। मैं सिद्धिदात्री माँ को नमन करता हूँ।
विश्वकर्ती, विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता, विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
माता सिद्धि दात्री इस विश्व को चलाती हैं, हमें जीवन देती हैं, हमारा जीवन लेती हैं और इस विश्व में प्रेम का संचार करती हैं। वे ही इस विश्व के प्राणियों की हर चिंता हर लेती हैं और वे ही हमारा भूतकाल हैं। मैं सिद्धिदात्री मां को बारंबार प्रणाम करता हूँ।
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भवसागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोऽस्तुते॥
सिद्धि दात्री माता के द्वारा ही हमें भक्ति व मुक्ति मिलती है तथा हमारे कष्टों का निवारण संभव हो पाता है। वे ही हमें भवसागर पार करवाती हैं और मैं उन्हें नमस्कार करता हूँ।
मां सिद्धिदात्री स्तोत्र का महत्व
नवदुर्गा में माँ ने अपने नौ गुणों का प्रतिनिधित्व करने के लिए नौ अलग-अलग रूपों को प्रकट किया था जिसमें से माँ सिद्धिदात्री का यह रूप अंतिम अर्थात नौवां रूप है। इस रूप में माँ भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं और इसी कारण इनका नाम भी सिद्धिदात्री रखा गया है। माँ के हर रूप का अपना अलग महत्व है किन्तु सिद्धियाँ पाने के बाद व्यक्ति को किसी और चीज़ की अभिलाषा नहीं रह जाती है। ऐसे में यह रूप अत्यधिक महत्व वाला है।
सिद्धिदात्री स्तोत्र के माध्यम से सिद्धिदात्री माता के गुणों, शक्तियों, महत्व, उद्देश्य तथा कर्मों के ऊपर प्रकाश डाला गया है और साथ के साथ उनकी आराधना भी की गयी है। ऐसे में मां सिद्धिदात्री स्तोत्र के माध्यम से हमें माता के इस स्वरुप का ज्ञान भी हो जाता है और उनकी पूजा भी हो जाती है। यही सिद्धिदात्री माता स्तोत्र का महत्व होता है।
सिद्धिदात्री स्तोत्र के लाभ
अब यदि आप प्रतिदिन सच्चे मन के साथ सिद्धिदात्री स्तोत्रं का पाठ करते हैं और मन ही मन माँ का ध्यान करते हैं तो इसके अभूतपूर्व लाभ देखने को मिलते हैं। सबसे प्रमुख लाभ तो यही है कि माँ हमें सभी तरह की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। अब यदि सिद्धिदात्री माता आपकी भक्ति से प्रसन्न हो जाती हैं तो उनके द्वारा आपको सभी आठों सिद्धियाँ दे दी जाती है जिससे आपका उद्धार हो जाता है।
सभी सिद्धियाँ प्राप्त करने के बाद व्यक्ति को किसी और चीज़ की आकांक्षा नहीं रह जाती है और उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। इसी के साथ ही यदि हम प्रतिदिन सिद्धिदात्री स्तोत्र का पाठ करते हैं तो हम अपने मन को नियंत्रण में करना सीख जाते हैं और सांसारिक मोहमाया से दूर हो जाते हैं। यही मां सिद्धिदात्री स्तोत्र के लाभ होते हैं।
देवी सिद्धिदात्री जी की आरती
जय सिद्धिदात्री माँ तू सिद्धि की दाता।
तु भक्तों की रक्षक तू दासों की माता॥
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि॥
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम॥
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदम्बें दाती तू सर्व सिद्धि है॥
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो॥
तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे॥
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया॥
सर्व सिद्धि दाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली॥
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा॥
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता॥”