चैत्र नवरात्रि 2025 की शुरुआत, हाथी पर माता का आगमन
भगवती जगज्जननी जगदम्बा सर्वेश्वर्यमयी और समस्त ऐश्वर्यो की देवी है। कलियुग में उनकी पूजा और उपासना बहुत फलदायक मानी जाती है। पूजा का अर्थ केवल मूर्ति पर फूल, प्रसाद या अन्य चीजें चढ़ाना नहीं है, बल्कि उस समय भगवती के सान्निध्य में रहना है। इसी कारण शास्त्रों में मानस-पूजा यानी मन से की गई पूजा का भी महत्व बताया गया है। क्या आपको पता है हर साल 04 बार नवरात्रि आती है – माघ,चैत्र,आषाढ़ और आश्विन| 04 नवरात्रि में से दो प्रकट और दो गुप्त नवरात्रि होते है| प्रकट नवरात्रि में पूजा, व्रत करने का विशेष महत्त्व है| धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रकट नवरात्रि के अंतर्गत चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि में देवी दुर्गा का धरती पर आगमन होता है| इस दौरान सभी लोग माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना करते हैं| इस बार 30 मार्च 2025(रविवार) से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है, जिसका समापन 6 अप्रैल 2025(रविवार) के दिन किया जाएगा। क्या आप जानते हैं कि चैत्र नवरात्रि 2025 के पहले दिन देवी दुर्गा के किस रूप की पूजा की जाती है? सबसे पहले इसी रूप को पूजने का क्या कारण है। आज हम देवी दुर्गा के इस रूप को विस्तारपूर्वक जानेंगे।
- पहला दिन: शैलपुत्री
- दूसरा दिन: ब्रह्मचारिणी
- तीसरा दिन: चंद्रघंटा
- चौथा दिन: कुष्मांडा
- पांचवा दिन: स्कंदमाता
- छठा दिन: कात्यायनी
- सातवां दिन: कालरात्रि
- आठवां दिन: महागौरी
- नौवां दिन: सिद्धिदात्री
पहले दिन देवी दुर्गा के किस रूप की पूजा
नवरात्रि 2025 के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है| माँ बेहद दयालु और कृपालु हैं| माँ शैलपुत्री के मुख पर कांतिमय तेज झलकता है. माँ शैलपुत्री बाएं हाथ में कमल पुष्प और दाएं हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं, इनकी सवारी वृषभ है. माँ अपने भक्तों का उद्धार कर दुखों को दूर करती हैं. आइए जानते हैं कि इनका नाम शैलपुत्री कैसे पड़ा. शैल का अर्थ होता है पर्वत. पर्वतों के राजा हिमालय के घर में माता पुत्री के रूप में जन्मी थीं, इसीलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. देवी शैलपुत्री को देवी पार्वती के नाम से भी जाना जाता है।
कलश स्थापना मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा तिथि के अनुसार 29 मार्च को शाम 04:27 पर होगी और तिथि का समापन 30 मार्च दोपहर 12:49 पर होगी।
30 मार्च, 2025 (रविवार)- प्रतिपदा घटस्थापना, शैलपुत्री पूजा.
घटस्थापना मुहूर्त प्रातः 06:13 बजे से प्रातः 10:22 तक हैं।
इसके बाद अभिजीत मुहूर्त 12:01 से लेकर दोपहर 12:50 के मध्य भी कलश स्थापना कर सकते हैं। इन दो शुभ योग में घटस्थापना कर सकते हैं।
पूजा सामग्री की संयुक्त सूची
- घटस्थापना (कलश स्थापना) के लिए:
- मिट्टी, पीतल या तांबे का बर्तन (कलश)
- शुद्ध मिट्टी
- जौ या गेहूं के बीज
- पानी
- गंगाजल
- आम या अशोक के पत्ते (5-7)
- नारियल (जटा वाला)
- लाल कपड़ा या चुनरी
- पवित्र धागा (मौली/कलावा)
- अनाज (चावल) से भरा कटोरा या ढक्कन
- सिक्का
- सुपारी
- वैकल्पिक: दूर्वा घास, हल्दी-अक्षत, छोटी इलायची, लौंग, कपूर
- देवी शैलपुत्री की पूजा के लिए:
- माँ दुर्गा/माँ शैलपुत्री की मूर्ति या तस्वीर
- लाल फूल (गुड़हल, गेंदा) और/या सफेद फूल
- कमल का फूल (वैकल्पिक)
- दीपक के लिए घी
- दूध से बनी मिठाई (खीर, दूध की बर्फी, आदि)
- नारियल पानी और कसा हुआ नारियल (वैकल्पिक)
- मावा लड्डू (वैकल्पिक)
- पंचामृत (वैकल्पिक)
- बेल पत्र (वैकल्पिक)
- सिंदूर
- केसर (वैकल्पिक)
- सफेद वस्त्र (वैकल्पिक)
- श्रृंगार सामग्री (यदि अर्पित कर रहे हों)
- सामान्य पूजा सामग्री:
- धूप और अगरबत्ती
- दीपक
- चावल (अक्षत)
- चंदन का लेप
- पान
- फल
- लकड़ी की चौकी
- माचिस
कलश स्थापना विधि
- चैत्र नवरात्रि के अवसर पर घर में कलश स्थापना करने के लिए सबसे पहले पूजा घर को अच्छी तरह से साफ कर लें. इसके बाद एक मिट्टी का बर्तन लें और उसमें साफ मिट्टी रखें जहां बैठा रहे हों वहां पर मिट्टी में बालू सप्तमृतिका मिलाकर पीठ बना लें। अच्छे से फैलाकर गोलाकर बना लें। बीच में थोड़ा सा गहरा रखे ताकि कलश सही से बैठ पाए।
- अब इसमें कुछ जौ के दाने बो दें और उनपर पानी का छिड़काव करें. अब इस मिट्टी के कलश को पूजा घर या जहां पर माता की चौकी हो, वहां इस कलश स्थापित कर दें। इससे पहले कलश को धोकर उसके ऊपर स्वास्तिक चिह्न बनाएं और सिंदूर का टीखा लगाएं।
- कलश स्थापना के समय घड़े में चावल, गेहूं, जौ, मूंग, चना, सिक्के, कुछ पत्ते, गंगाजल, नारियल, कुमकुम, रोली डालकर उसके ऊपर नारियल रखा जाता है। घड़े के मुंह पर मौली बांध कर कुमकुम से तिलक लगाने के बाद घड़े क एक चौकी पर स्थापित करना चाहिए।
- अब जिस स्थान पर कलश स्थापित करना है, उस जगह को दाएं हाथ से स्पर्श करके माथे पर लगाएं। अब कलश स्थापित करते हुए इस मंत्र का जाप करना अत्यंत शुभ माना गया है।
ओम आ जिघ्र कलशं मह्या त्वा विशन्त्विन्दव:।
पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशतादयिः
कलश पर नारियल
कलश पर नारियल रखने के लिए कुछ नियम हैं:
- नारियल को लाल रंग के कपड़े में लपेटकर बांधना चाहिए. लाल रंग देवी दुर्गा का प्रतीक है.
- नारियल को इस तरह से रखना चाहिए कि उसमें बनी आंखें आपकी तरफ़ ऊपर की ओर हों.
- नारियल का मुख हमेशा अपनी तरफ़ ही रखना चाहिए.
- कलश स्थापना के समय नारियल पर कलावा बांधना चाहिए.
- कलश में आम के या अशोक के पत्ते रखने चाहिए.
- कलश में जल डालें और एक सिक्का डालें फिर कलश के ऊपर नारियल रखें.
माँ शैलपुत्री की पूजा ही क्यों ?
माँ शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूप में पहले स्वरूप में जानी जाती हैं । ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं । इसी कारण माँ शैलपुत्री की पूजा सर्वप्रथम की जाती है। उपासना के पहले दिन योगी अपने मन को मूलाधार चक्र में केंद्रित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना की शुरुआत होती है।
शैलपुत्री का स्वरूप श्वेत क्यों ?
माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं (शैल अर्थात हिमालय) इसीलिए इनका नाम शैलपुत्री पड़ा | पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ही इनका वर्ण श्वेत है| इनके पूजन में श्वेत वस्त्र और श्वेत पुष्प अर्पित किया जाता है इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल बाएं हाथ में कमल है | माँ शैलपुत्री की सवारी बैल है | श्वेत वर्ण के कारण ही इनको सौम्यता और स्नेह का प्रतीक माना जाता है | माँ शैलपुत्री की सवारी के रूप में वृषभ को माना जाता है|
माँ शैलपुत्री किसका रूप हैं ?
माँ शैलपुत्री सती का ही रूप हैं।अपने पूर्व जन्म में ये प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं ,तब इनका नाम सती था । इनका विवाह भगवन शंकर जी हुआ था |
माँ शैल पुत्री की कथा के रूप में कहा जाता है कि एकबार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया था । इसमें उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया , किन्तु शंकर जी को इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया । जब सती को इस बात का पता चला तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा ।
शंकर जी की इच्छा के विरुद्ध जाकर पार्वती जी वहाँ गयीं । सती ने वहाँ पहुँच कर देखा कि उनके परिजनों और बहनों का व्यवहार बहुत रुष्ठ है। यहाँ तक की पिता दक्ष भी उनसे ठीक से बात नहीं कर रहे थे, केवल उनकी माता ने उन्हें स्नेह से गले लगाया ।
चतुर्दिक भगवन शंकरजी के प्रति सभी के मन में क्लेश , तिरस्कार भरा हुआ था । राजा दक्ष ने उनके प्रति बहुत अपमानजनक वचन कहे। यह सब देखकर सती का ह्रदय क्षोभ , ग्लानि और क्रोध से भर गया ।
सती अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर पाईं। उन्होंने तत्काल अपने रूप को योगाग्नि से जला दिया। इस दुखद घटना को सुनकर शिव ने क्रोधित होकर अपने गणों को भेजकर राजा दक्ष का यज्ञ पूरी तरह से नष्ट करवा दिया।
सती ने योगाग्नि से अपने शरीर को भस्म करके अगले जन्म में हिमालय के राजा की पुत्री के रूप में जन्म लिया। हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें ’’शैलपुत्री’’ के नाम से जाना गया । पार्वती और हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हैमवती रूप में देवताओं का गर्व तोड़ा था।
‘शैलपुत्री’ देवी का विवाह भी शंकरजी से ही हुआ। पूर्वजन्म की भाँति इस जन्म में भी वे शिवजी की ही अर्द्धांगिनी बनीं। नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियाँ अनंत हैं।
माँ शैलपुत्री का भोग
माँ शैलपुत्री चन्द्रमा से सम्बन्ध रखती है। इन्हे सफ़ेद रंग खाद्य पदार्थ का भोग लगाया जाता है जैसे खीर, रसगुल्ले, बताशे आदि। बेहतर स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए माँ शैलपुत्री को गाय के घी का भोग लगाएं या गाय के घी से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं।
मां शैलपुत्री की पूजा विधि
- इस दिन सुबह उठकर जल्दी स्नान कर लें, फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।
- घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
- मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें।
- नवरात्रि 2025 के पहले दिन कलश स्थापना भी की जाती है।
- पूजा घर में कलश स्थापना के स्थान पर दीपक जलाएं।
- अब मां दुर्गा को अर्घ्य दें।
- मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
- धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर माँ की आरती करें।
- माँ को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। इस दिन माँ को सफेद वस्त्र या सफेद फूल अर्पित करें।
- माँ को सफेद बर्फी का भोग लगाएं।
माँ शैलपुत्री की स्तुति
नवरात्रि 2025 के पहले दिन ब्रह्मः मुहूर्त में उठकर स्नान करें और माता की चौकी सजाकर कलश स्थापित करें । आज के दिन दुर्गा सप्तशती पाठ के साथ ही माँ शैलपुत्री की कथा भी की जाती है। माँ शैलपुत्री का ध्यान करें और नीचे दिए हुए मंत्र का जाप कर नवरात्री की पहले दिन की पूजा संपन्न करें। माँ शैलपुत्री की पूजा करने से सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं ।
॥ ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः ॥
वंदे वाद्विछतलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम । वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम् ।
देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।
माँ शैलपुत्री की आरती
माँ शैलपुत्री की आरती नवरात्रि के पहले दिन गाई जाती है। यह आरती देवी की महिमा का वर्णन करती है। माँ शैलपुत्री की आरती गाने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
शैलपुत्री माँ बैल पर सवार।
करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी।
तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे।
जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू।
दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी।
आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुख तकलीफ मिटा दो।
घी का सुंदर दीप जला के।
गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं।
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे।
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।