चलो बुलावा आया है, माता वैष्णों ने बुलाया है!

चलो बुलावा आया है, माता वैष्णों ने बुलाया है!

हिन्दू धर्म में माता वैष्णों देवी को माँ आदिशक्ति दुर्गा का स्वरूप माना गया है। इन्हें वैष्णवी, त्रिकुटा, माता शेरोंवाली, माता पहाड़ों वाली आदि प्रमुख नामों से जाना जाता है। वैष्णों देवी धाम ( कटरा ) हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के जम्मू प्रान्त में त्रिकुट पर्वत पर स्थित है। यहाँ माता वैष्णों एक पवित्र गुफा में विराजमान है जिसकी लम्बाई करीब 98 फ़ीट है। गुफा के भीतर एक बड़ा चबूतरा बना हुआ है। जिस पर माँ आदि शक्ति स्वरूपा महालक्ष्मी, महाकाली तथा महासरस्वती के पिण्डीय स्वरूपों का एक साथ दर्शन किये जाते है। इन तीन पिण्डी स्वरूपों को ही माता वैष्णों देवी के नाम से जाना जाता है। 

यह गुफा वहीं स्थान है, जहाँ माता वैष्णों देवी ने भैरव नाथ का वध किया था। जिसके पश्चात भैरवनाथ का धड़ ( शरीर ) वहीं गिर गया जबकि उसका सिर उड़ कर 3 किमी दूर एक घाटी में गिरा। इस घाटी को वर्तमान समय में भैरव घाटी के नाम से जाना जाता है और यहीं भैरवनाथ का भव्य मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि वैष्णों देवी यात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी गयी जब तक श्रद्धालु भैरवनाथ मंदिर में आकर दर्शन न कर ले। 

धार्मिक मान्यता के अनुसार प्रकट नवरात्रि के अंतर्गत चैत्र और शारदीय नवरात्रि में देवी दुर्गा का धरती पर आगमन होता है| इस दौरान सभी लोग माँ दुर्गा के नौ रूपों की उपासना करते हैं| इस बार 30 मार्च 2025(रविवार) से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है, जिसका समापन 6 अप्रैल 2025(रविवार) के दिन किया जाएगा।

नवरात्रि के नौ दिन, मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होते हैं, जिनमें प्रत्येक दिन एक विशेष देवी का महत्व होता है. 
 
नवरात्रि के नौ दिन और उनकी देवियाँ:
  • पहला दिन: शैलपुत्री
  • दूसरा दिन: ब्रह्मचारिणी
  • तीसरा दिन: चंद्रघंटा
  • चौथा दिन: कुष्मांडा
  • पांचवा दिन: स्कंदमाता
  • छठा दिन: कात्यायनी
  • सातवां दिन: कालरात्रि
  • आठवां दिन: महागौरी
  • नौवां दिन: सिद्धिदात्री 

मंदिर से जुड़ीं पौरणिक कथा

वैष्णों देवी और भैरवनाथ की कथा

मंदिर के सम्बन्ध में कई तरह की कथायें प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि एक बार त्रिकुटा की पहाड़ी पर 1 सुन्दर कन्या को देख कर भैरव नाथ ने उसे पकड़ना चाहा। लेकिन तभी वह कन्या स्वयं को वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चली। भैरव नाथ भी पीछा करता वहां पहुंच गया। माना जाता है कि तभी माँ की रक्षा के लिए वहाँ पवन पुत्र हनुमान पहुंचे गए। हनुमान जी के आग्रह पर माता ने धरती पर बाण चला कर एक जलधारा निकाली। और उस जल से अपने केश धुलकर माता ने एक गुफा में 9 माह तक कठिन तपस्या की। उस गुफा के बाहर बैठकर हनुमान जी ने पहरा दिया। दूसरी ओर एक साधु ने भैरव नाथ से कहा कि, तू जिसे एक साधारण कन्या समझ रहा है दरअसल वह आदि शक्ति जगदम्बा है। इस लिए इस महा शक्ति का पीछा करना छोड़ दे। उधर माता ने अपनी तपस्या पूर्ण कर गुफा के दूसरी छोर से प्रकट हुई। यह गुफा आज भी अर्ध कुमारी या आदि कुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। अर्धकुमारी में आज भी माता के चरण पादुका चिन्ह दिखाई देते है। 

अंत में गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया। और भैरव नाथ को वापस जाने के लिए कहा लेकिन भैरव नाथ नहीं माना और माता का पीछा करते हुए गुफा में प्रवेश करने लगा।

गुफा पर पहरा दे रहे हनुमान जी ने उसे युद्ध के लिए ललकारा और दोनों का युद्ध हुआ। युद्ध का कोई भी अंत न देखकर माता वैष्णों देवी ने महाकाली का रूप रखकर भैरव नाथ का वध कर दिया। अपने वध के बाद भैरव नाथ को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने माँ से क्षमा दान की भीख मांगी। माँ वैष्णों देवी जानती थी भैरव नाथ की मुख्य मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। तब उन्होंने भैरव को पूर्वजन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की। साथ ही उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पुरे नहीं माने जायेंगे जब तक कोई भक्त मेरे बाद तुम्हारे दर्शन न कर ले।

वैष्णों देवी और भक्त श्री धर की कथा

वैष्णों देवी की एक और कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि 700 वर्ष पहले कटरा से कुछ दूरी पर स्थित एक गांव में माँ वैष्णों देवी के परम् भक्त श्रीधर नामक एक ब्राम्हण रहा करते थे। वे निसंतान एवं गरीब थे। एक बार उन्होंने माता रानी का भंडारा कराने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने गांव वालों से मदद भी मांगी। लेकिन किसी ने भी श्री धर की मदद नहीं की। भंडारे का दिन आ गया आमंत्रित मेहमानों की संख्या बढ़ती देख श्रीधर ने सच्चे मन से  माता रानी को याद किया। तभी उसने अपनी झोपड़ी में एक छोटी कन्या को आते देखा। जिसका नाम वैष्णवी था। वह कन्या सभी को स्वादिष्ट भोजन परोस रही थी। भंडारा बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया। भंडारे के बाद वह कन्या गायब हो गयी और किसी को नहीं दिखी। बहुत दिनों के बाद श्री धर को उस छोटी लड़की का सपना आया।  इससे स्पष्ट हुआ कि वह छोटी लड़की वैष्णवी थी। माता रानी के रूप में आयी लड़की ने गुफा के बारे में बताया और श्री धर को चार बेटे होने का वरदान दिया। श्री धर खुश हो गए और माँ की गुफा के तलाश में निकल पड़े। कुछ दिन बाद उन्हें वह गुफा मिल गयी। तभी से वहाँ पर माता के दर्शन के लिए श्रद्धालु जाने लगे।

यात्रा की शुरुआत – कटरा से यात्रा प्रारंभ करें

  • कटरा: माता वैष्णो देवी यात्रा का बेस कैंप है, जो जम्मू शहर से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जम्मू तक ट्रेन, बस या फ्लाइट के माध्यम से पहुँचा जा सकता है, और वहाँ से कटरा तक के लिए बस, टैक्सी या निजी वाहन उपलब्ध हैं।
  • यात्रा पर्ची: यात्रा शुरू करने से पहले कटरा में यात्रा पर्ची (यात्रा पंजीकरण) कराना अनिवार्य है। यह पर्ची मुफ्त होती है और कटरा बस स्टैंड या ऑनलाइन प्राप्त की जा सकती है।

यात्रा मार्ग और सुविधाएँ

  • यात्रा का मार्ग: कटरा से माता वैष्णो देवी मंदिर की दूरी लगभग 13 किलोमीटर है। यह मार्ग अच्छी तरह से पक्का हुआ है और पूरे रास्ते सीढ़ियाँ, छतरी वाले रास्ते, विश्राम स्थल, और पानी की व्यवस्था है।
  • विश्राम स्थल: यात्रा के दौरान कई विश्राम स्थल हैं जैसे बाणगंगा, अर्धकुंवारी, और सांझी छत, जहाँ पर आराम किया जा सकता है।
  • विकल्प: पैदल यात्रा के अलावा घोड़ा, खच्चर, पालकी, बैटरी ऑपरेटेड वाहन, और हेलीकॉप्टर सेवाएँ भी उपलब्ध हैं, जो विशेष रूप से बुजुर्ग और बच्चों के लिए सुविधाजनक होती हैं।

यात्रा के दौरान रखी जाने वाली सावधानियाँ

  • स्वास्थ्य और फिटनेस: यात्रा में चढ़ाई शामिल है, इसलिए सुनिश्चित करें कि आपकी स्वास्थ्य स्थिति ठीक हो। उच्च रक्तचाप, हृदय रोग या घुटनों की समस्या वाले लोग चिकित्सक से परामर्श लें।
  • मौसम के अनुसार तैयारी: ठंड के मौसम में यहाँ तापमान बहुत कम हो सकता है, इसलिए गर्म कपड़े, दस्ताने और टोपी साथ लेकर जाएँ। मानसून के दौरान बारिश से बचाव के लिए रेनकोट और वाटरप्रूफ जूते पहनें।
  • रात की यात्रा से बचें: अगर संभव हो तो दिन के समय यात्रा शुरू करें, क्योंकि रात में मार्ग पर ठंड अधिक होती है और धुंध के कारण दृश्यता कम हो जाती है।

क्या-क्या साथ लेकर जाएँ

  • आरामदायक कपड़े और जूते: पैदल यात्रा के लिए हल्के और आरामदायक कपड़े पहनें और अच्छे ट्रैकिंग शूज़ का चुनाव करें।
  • पानी और स्नैक्स: पानी की बोतल और हल्के स्नैक्स जैसे सूखे मेवे, बिस्किट और चॉकलेट साथ रखें, ताकि यात्रा के दौरान ऊर्जा बनी रहे।
  • औषधियाँ: अपने साथ आवश्यक दवाइयाँ और फर्स्ट एड किट अवश्य रखें, जैसे बाम, दर्द निवारक स्प्रे, और बैंडेज।
  • आईडी प्रूफ: यात्रा के लिए आईडी प्रूफ साथ रखना भी आवश्यक है, खासकर हेलीकॉप्टर सेवा का उपयोग करने पर इसकी आवश्यकता होती है।

यात्रा के विशेष पड़ाव

  • बाणगंगा: यह यात्रा का पहला पड़ाव है, जहाँ माना जाता है कि माता ने अपने बाण से गंगा की धारा प्रवाहित की थी।
  • अर्धकुंवारी: यह स्थान आधी यात्रा पूरी करने के बाद आता है, जहाँ माता ने भैरवनाथ से बचने के लिए 9 महीने तक गुफा में तपस्या की थी।
  • सांझी छत: यह अंतिम पड़ाव है, जहाँ से मंदिर तक की दूरी लगभग 2.5 किलोमीटर रह जाती है। यहाँ विश्राम के लिए अच्छी सुविधाएँ हैं।

भैरव मंदिर की यात्रा

माता वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन के बाद भक्त भैरवनाथ मंदिर के दर्शन करने जाते हैं, जो माता के मंदिर से लगभग 2.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे माता वैष्णो देवी यात्रा का अनिवार्य भाग माना जाता है।

विशेष सुविधाएँ

  • बैटरी कार सेवा: अर्धकुंवारी से भैरों मंदिर तक बैटरी कार सेवा उपलब्ध है।
  • भोजन और जलपान: यात्रा मार्ग पर कई स्थानों पर लंगर और भोजनालय हैं, जहाँ निशुल्क भोजन की व्यवस्था होती है।
  • हेलीकॉप्टर सेवा: कटरा से सांझी छत तक हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है, जिससे यात्रा का समय और परिश्रम कम हो जाता है।

निष्कर्ष

माता वैष्णों देवी की यात्रा एक अद्भुत और पवित्र अनुभव है, जो न केवल धार्मिक, बल्कि व्यक्ति को मानसिक और आत्मिक शांति देने में मदद करती है। इस यात्रा के लिए सही तैयारी और सावधानियाँ बरतकर इसे आनंददायक और सुरक्षित बनाया जा सकता है। उम्मीद करते है इस लेख के माध्यम से आपको इस यात्रा से जुडीं समस्त जानकारी प्राप्त हुई होगी। 

Leave a Comment