नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का है विधान
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 30 मार्च को हो रही है और 31 मार्च को माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाएगी।
माता ब्रह्माचारिणी को तप की देवी कहा जाता है। इसदिन भक्त विशेष मंत्र और भोग के द्वारा माता को प्रसन्न करते हैं। ऐसे में इसदिन किस विधि से पूजा की जाती है, मंत्र क्या है, क्या भोग लगाएं? इसके बारे में जानना बेहद जरूरी है।
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरुप
‘ब्रह्मचारिणी’ दो शब्द ‘ब्रह्म’ और ‘चारिणी’ से मिलकर बना है। जहां ‘ब्रह्म’ का अर्थ है तपस्या, वहीं ‘चारिणी’ का अर्थ है आचरण करने वाली। अर्थात, ब्रह्मचारिणी का शाब्दिक अर्थ है, ‘तप का आचरण करने वाली’| महादेव को अपने पति के रूप में पाने के लिए की गई कठोर तपस्या के कारण ही देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरूप का आविर्भाव हुआ था।देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है |
माँ ब्रह्मचारिणी का स्वरूप श्वेत वस्त्र में सुशोभित दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमण्डल धारण किये हुए है | माँ की पूजा करने से भक्तों को शुभ फल की प्राप्ति होती है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। साथ ही शक्ति, बुद्धि और ज्ञान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
माँ के ब्रह्मचारिणी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने अपने पूर्व जन्म में राजा हिमालय के घर में पुत्री रूप में लिया था। तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी।
इस कठिन तपस्या के कारण माँ तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से विख्यात हुईं । एक हज़ार वर्ष उन्होंने केवल फल, मूल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए देवी ने खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे। इस कठिन तपस्या के पश्चात तीन हज़ार वर्षों तक केवल ज़मीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वे भगवान शिव की आराधना करती रहीं।
इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोड़ दिया और कई हज़ार वर्षों तक वे निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं। पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अर्पणा’ भी पड़ गया।
कई हज़ार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का शरीर एकदम क्षीण हो उठा,उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यंत दुखी हुई और उन्होंने उन्हें इस कठिन तपस्या से विरक्त करने के लिए आवाज़ दी ‘उ मा’।
तब से देवी ब्रह्मचारिणी का एक नाम उमा भी पड़ गया। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी देवी ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे।
अंत में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वर में कहा-‘हे देवी!आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की जैसी तुमने की हैं। तुम्हारे इस आलोकिक तप के कारण तीनों लोकों में सराहना हो रही हैं।
तुम्हारी मनोकामना अवश्य परिपूर्ण होगी। भगवान चंद्रमौली शिवजी तुम्हे पति रूप में प्राप्त अवश्य होंगे।अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हे बुलाने आ रहे हैं।’
इसके बाद माता घर लौट आएं और कुछ दिनों बाद ब्रह्मा के लेख के अनुसार उनका विवाह महादेव शिव के साथ हो गया।
देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए | माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है | आइए अब यहां जानते हैं, माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि और मंत्र क्या है?
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
मां ब्रह्मचारिणी की उपासना से आत्मबल, संयम और कठिन परिस्थितियों में धैर्य प्राप्त होता है। उनका आशीर्वाद जीवन में आने वाली सभी चुनौतियों को स्वीकारने और उन्हें पार करने की शक्ति प्रदान करता है।
माँ ब्रह्मचारिणी पूजा विधि
- नवरात्रि 2025 के दूसरे दिन यानी 31 मार्च को स्नानादि से निवृत्त होकर माँ ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें।
- साथ ही कलश के पास माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा को स्थापित करें।
- माता को सबसे पहले पंचामृत से स्नान कराएं।
- इसके बाद रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें।
- माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा में गुड़हल या कमल के फूल का ही प्रयोग करें।
- माँ को चीनी और मिश्री का भोग लगाना चाहिए | ऐसा माना जाता है कि चीनी भोग से उपासक को लम्बी आयु मिलती है |
- दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
- सफेद चंदन के चूरे में कपूर रखकर उसे प्रज्वलित करें, अग्नि शांत करके उसके धूएं से मां ब्रह्मचारिणी की आरती करें।
माँ ब्रह्मचारिणी के पूजन का शुभ मुहूर्त
नवरात्रि 2025 के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 30 मार्च 2025 प्रातः6:30 से 8:00 बजे तक(स्थानीय पंचांग के अनुसार)है।
मां ब्रह्मचारिणी के लिए भोग
नवरात्रि 2025 के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी को चीनी, सफेद मिठाई या मिश्री का भोग लगाने का विधान है। इस दिन मिश्री, दूध और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए। इन चीजों का भोग लगाने से भक्त को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त है। साथ ही आरोग्य की प्राप्ति होती है।
माँ ब्रह्मचारिणी की स्तुति
ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा करने के बाद स्तुति और कवच का पाठ करना चाहिए। जिससे देवी प्रसन्न होती हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्तोत्र का पाठ करने से ज्ञान और शांति मिलती है। हर तरह की परेशानियों से छुटकारा मिलता है। वहीं सोचे हुए काम भी पूरे हो जाते हैं। माँ की स्तुति इस प्रकार है |
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
माँ ब्रह्मचारिणी का कवच
माँ ब्रह्मचारिणी की स्तुति के बाद कवच का पाठ भी कर सकते हैं। इसका पाठ करने से रक्षा होती है। ब्रह्मचारिणी कवच पाठ करने से तनाव दूर होता है और कोई अनहोनी नहीं होती। इस कवच का पाठ करने से दुर्घटना से भी रक्षा होती है।
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो ॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी ॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।
माँ ब्रह्मचारिणी का बीज मंत्र
ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः.
माँ ब्रह्मचारिणी पूजा मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
मां ब्रह्मचारिणी का पूजन आत्मशक्ति, धैर्य और तप की महत्ता को उजागर करता है। उनकी उपासना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और कठिनाइयों से लड़ने का आत्मबल मिलता है।
इस नवरात्रि, मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से अपने जीवन को साधना और संयम से आलोकित करें।
मां ब्रह्मचारिणी की आरती
मां ब्रह्मचारिणी की आरती नवरात्रि के दूसरे दिन गाई जाती है। यह आरती देवी के ज्ञान और तपस्या की महिमा का गुणगान करती है।
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्म मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।