सातवें दिन करें मां कालरात्रि की पूजा
नवरात्रि के सातवें दिन, जिन्हें महासप्तसती भी कहा जाता है मां कालरात्रि की पूजा की जाती है और इस दिन व्रत रखने का विशेष महत्व है। भक्त इस दिन उपवास रखकर माँ कालरात्रि का ध्यान करते हैं और उनसे शत्रुओं, भय, तथा जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं। व्रतधारी काले वस्त्र धारण करते हैं और माँ को गुड़ का भोग अर्पित करते हैं, जो उन्हें अत्यंत प्रिय है। इस व्रत से मनुष्य को साहस, आत्मबल और आत्मविश्वास प्राप्त होता है, जिससे वह जीवन की हर बाधा को पार कर सकता है। माँ की कृपा से व्रती के जीवन में शांति, समृद्धि और सुरक्षा का संचार होता है।
मां कालरात्रि का वाहन गर्दभ यानी गधा है, जो सभी जीव-जंतुओं में सबसे ज्यादा मेहनती माना जाता है। मां कालरात्रि अपने इस वाहन पर पृथ्वीलोक का विचरण करती हैं। कहा जाता है कि मां कालरात्रि अपने भक्तों को काल से बचाती हैं यानी मां के उपासक की अकाल मृत्यु नहीं होती है। मां कालरात्रि का पूजन मात्र करने से समस्त दुखों एवं पापों का नाश हो जाता है। मां कालरात्रि के ध्यान मात्र से ही मनुष्य को उत्तम पद की प्राप्ति होती है साथ ही इनके भक्त सांसारिक मोह माया से मुक्त हो जाते हैं। साथ ही इनकी आरती करने और मंत्र जपने से जीवन में खुशियां आती हैं।
मां कालरात्रि का स्वरूप
नवरात्रि का सातवां दिन कालरात्रि माता को समर्पित होता है। ‘कालरात्रि’ नाम का अर्थ है ‘अंधेरी रात’। कालरात्रि क्रोध में विकराल रूप धारण कर लेती हैं। कालरात्रि का शरीर अंधकार की तरह काला है। मां कालरात्रि के चार हाथ तीन नेत्र हैं। काले रंग और बिखरे बालों के साथ, वह अंधकार का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनके गले में एक चमकदार मुंड माला है, जो बिजली जैसी दिखती है। मां की श्वास से आग निकलती है। एक हाथ में माता ने खड्ग (तलवार), दूसरे में लौह शस्त्र, तीसरे हाथ वरमुद्रा और चौथे हाथ अभय मुद्रा में है।
कालरात्रि सभी बुरी शक्तियों का नाश करती हैं और अपने भक्तों की रक्षा करती हैं। वह अंधकार में विकराल रूप जरूर धारण करती है लेकिन उनके आगमन से दुष्टों का विनाश होता है और चारों ओर प्रकाश हो जाता है। मां कालरात्रि को देवी काली का रूप भी माना जाता है। देवी कालरात्रि पापियों का संहार करके उनका लहू पीती हैं।
मां कालरात्रि व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नामक राक्षसों ने एक बार तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। इन राक्षसों की चीख-पुकार से क्रोधित होकर देवता भगवान शिव के पास गए और अपनी समस्या का समाधान मांगा। तब भगवान शिव ने माता पार्वती से इन राक्षसों को मारने के लिए कहा। तब माता पार्वती ने दुर्गा का रूप धारण किया और शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया।
लेकिन जब रक्तबीज को मारने का समय आया तो उनके शरीर से निकले रक्त से सैकड़ों-हजारों रक्तबीज राक्षस पैदा हो जाते थे। रक्तबीज को वरदान था कि यदि उसके खून की एक बूंद भी जमीन पर गिरेगी तो उसके जैसा दूसरा राक्षस पैदा हो जाएगा। ऐसी स्थिति में, दुर्गा ने अपनी पूरी शक्ति से देवी कालरात्रि का निर्माण किया। इसके बाद मां दुर्गा ने राक्षस रक्तबीज का वध किया और जमीन पर गिरने से पहले उसके शरीर से निकले रक्त को मां कालरात्रि ने अपने मुंह में भर लिया। इस तरह से मां ने रक्तबीज का भी वध कर दिया।
माँ कालरात्रि का महत्व
माँ कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। उनका यह रूप शत्रुओं का विनाश करने वाला और बुराइयों से मुक्त करने वाला माना जाता है। माँ कालरात्रि की उपासना करने से भक्तों को जीवन के सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही, माँ की कृपा से उनके भक्तों का मार्ग प्रशस्त होता है और जीवन में आने वाली बाधाओं का अंत होता है।
माँ कालरात्रि उन लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं जो अपने जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक संकटों का सामना कर रहे हैं। उनकी पूजा करने से साहस, आत्मविश्वास और मानसिक शांति प्राप्त होती है। विशेष रूप से, जो लोग किसी भय, शत्रु, या नकारात्मक शक्ति से परेशान हैं, उनके लिए माँ कालरात्रि की उपासना बहुत फलदायी होती है।
नवरात्रि के सातवे दिन माँ कालरात्रि की पूजा विधि
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा करने के लिए विशेष विधि का पालन किया जाता है। यह पूजा विधि भक्तों को भय, शत्रु और बाधाओं से मुक्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है।
- स्नान और शुद्धिकरण: सबसे पहले पूजा करने वाले को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए और मन को पवित्र रखना चाहिए।
- पूजा स्थल की तैयारी: माँ कालरात्रि की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें और दीप जलाकर उन्हें प्रणाम करें।
- पूजा सामग्री: रोली, अक्षत, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), पान, सुपारी, और काले तिल आदि पूजा सामग्री एकत्र करें। माँ कालरात्रि को विशेष रूप से गुड़ का भोग लगाया जाता है।
- मंत्र जाप: माँ कालरात्रि के विशेष मंत्र का जाप करें। “ॐ कालरात्र्यै नमः” मंत्र का उच्चारण करते हुए ध्यान करें। इससे मानसिक शांति और संकटों से मुक्ति मिलती है।
- प्रसाद और आरती: माँ को गुड़ और अन्य नैवेद्य अर्पित करें। पूजा के बाद माँ कालरात्रि की आरती करें और सभी को प्रसाद वितरित करें।
- ध्यान और साधना: पूजा के अंत में माँ कालरात्रि का ध्यान करें और उनसे अपने सभी भय और कष्टों को समाप्त करने की प्रार्थना करें। इस दिन विशेष रूप से रात्रि में ध्यान करना शुभ माना जाता है।
माँ कालरात्रि मंत्र
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
प्रार्थना
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
स्तोत्र
हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
सिद्ध मंत्र
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम: .
ॐ कालरात्र्यै नम:
ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महामायायै स्वाहा।
ध्यान मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्ल सल्लोहलता कण्टक भूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
माँ कालरात्रि का प्रिय रंग और भोग
माँ कालरात्रि का प्रिय रंग काला है, जो शक्ति और विनाश का प्रतीक माना जाता है। भक्त इस दिन काले वस्त्र पहनकर उनकी पूजा करते हैं। यह रंग नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने और आत्मबल को बढ़ाने का प्रतीक है।
माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग अत्यंत प्रिय है। उनकी पूजा में गुड़ अर्पित करने से भक्तों को स्वास्थ्य, समृद्धि और बल का आशीर्वाद मिलता है। इसके साथ ही उन्हें अन्य शुद्ध और सात्विक पदार्थ भी भोग स्वरूप चढ़ाए जा सकते हैं।
सातवे दिन का महत्व और लाभ
नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना करने से भक्तों को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। इस दिन की पूजा से व्यक्ति को भय, संकट और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। माँ कालरात्रि की कृपा से जीवन में स्थिरता, आत्मविश्वास और साहस का विकास होता है।
विशेष रूप से, जो लोग किसी तरह की बाधाओं या डर से जूझ रहे हैं, उनके लिए यह दिन अत्यंत शुभ होता है। माँ कालरात्रि के आशीर्वाद से व्यक्ति अपने जीवन के सभी संकटों और कठिनाइयों को पार कर लेता है और उसे मानसिक शांति प्राप्त होती है।
माँ कालरात्रि की पूजा से लाभ
माँ कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
- भयमुक्ति: माँ कालरात्रि की पूजा से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के भय का नाश होता है।
- शत्रुओं पर विजय: उनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है और व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है।
- मानसिक शांति: माँ कालरात्रि का आशीर्वाद मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
- नकारात्मक ऊर्जा का नाश: उनकी पूजा से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सभी नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है।
- आत्मबल और साहस का विकास: माँ की कृपा से व्यक्ति में साहस, आत्मविश्वास और आत्मबल का विकास होता है, जिससे वह जीवन की हर चुनौती का सामना कर सकता है।
निष्कर्ष
मां कालरात्रि भक्तों को शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। नवरात्रि के सातवें दिन इनकी विधिवत पूजा करने से अकाल मृत्यु के भय से छुटकारा मिल जाता है। साथ ही हर तरह के भय, कष्ट और रोगों का नाश होता है। अगर जीवन में शत्रु बढ़ गए हैं तो मां कालरात्रि की पूजा जरूर करनी चाहिए। मां कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए उन्हें गुड़ का भोग जरूर अर्पित करना चाहिए।
मां कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय-जय-महाकाली । काल के मुह से बचाने वाली ॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा । महाचंडी तेरा अवतार ॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा । महाकाली है तेरा पसारा ॥
खडग खप्पर रखने वाली । दुष्टों का लहू चखने वाली ॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा । सब जगह देखूं तेरा नजारा ॥
सभी देवता सब नर-नारी । गावें स्तुति सभी तुम्हारी ॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा । कृपा करे तो कोई भी दुःख ना ॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी । ना कोई गम ना संकट भारी ॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें । महाकाली मां जिसे बचाबे ॥
तू भी भक्त प्रेम से कह । कालरात्रि मां तेरी जय ॥