क्या कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहाँ दानवों और राक्षसों की पूजा की जाती है?
क्या आपने कभी सोचा है कि दुनिया में ऐसे भी स्थान हो सकते हैं जहाँ दानवों और राक्षसों की पूजा होती है? यह सुनने में अजीब लगता है, लेकिन सच में कुछ समुदाय ऐसे हैं जो इन शक्तिशाली और भयानक प्राणियों को पूजते हैं। हमारे धर्म और पौराणिक कथाओं में राक्षसों को बुरा माना जाता है, लेकिन कुछ जगहों पर इन्हें देवताओं की तरह पूजा जाता है।
भारत को देवी-देवताओं की पूजा का देश माना जाता है। यहाँ के मंदिरों में हर कोने में किसी न किसी देवी या देवता की आराधना की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहाँ दानवों और राक्षसों की पूजा की जाती है? यह सुनकर भले ही आश्चर्य हो, लेकिन भारत के कुछ मंदिरों में दानवों की आराधना का अनूठा इतिहास और धार्मिक मान्यता है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ मंदिरों के बारे में जो अपनी विचित्र पूजा-पद्धति के लिए प्रसिद्ध हैं।
अहिरावण मंदिर, तमिलनाडु
तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले में स्थित यह मंदिर राक्षस अहिरावण को समर्पित है। अहिरावण रावण का भाई था और रामायण के युद्ध के दौरान उसने भगवान राम और लक्ष्मण का अपहरण कर उन्हें अपने अधोलोक ले गया था। यद्यपि बाद में भगवान हनुमान ने उसका वध किया, लेकिन इस मंदिर में उसकी पूजा होती है ताकि लोगों की समस्याएँ दूर हों और जीवन में शांति बनी रहे। यहाँ भक्त विशेष पूजा करते हैं ताकि राक्षसी शक्तियों से मुक्ति प्राप्त हो सके।
भीमासुर मंदिर, आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में स्थित भीमासुर मंदिर महाभारत के भीम के नाम पर नहीं, बल्कि राक्षस भीमासुर को समर्पित है। पौराणिक कथा के अनुसार, भीमासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे भगवान शिव के वरदान के कारण पराजित करना कठिन था। यहाँ पर भक्त उसकी पूजा करके मान्यता प्राप्त करते हैं कि उनकी बाधाएँ समाप्त हों और सभी प्रकार के संकट दूर हों।
जालंधर नाथ मंदिर, पंजाब
पंजाब के जालंधर में स्थित यह मंदिर राक्षस जालंधर को समर्पित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जालंधर एक महान योद्धा और शिव भक्त था। उसकी शक्ति का स्रोत उसकी पत्नी वृंदा की शुद्धता थी। इस मंदिर में आज भी लोग जालंधर को पूजते हैं, मानते हुए कि उनकी पूजा से नकारात्मक ऊर्जा और अशुभ प्रभाव दूर रहते हैं।
हिडिम्बा मंदिर, हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश के मनाली में स्थित यह मंदिर हिडिम्बा देवी को समर्पित है, जो एक राक्षसी थी और भीम की पत्नी थी। हिडिम्बा के जीवन का एक खास पहलू यह है कि उसने अपनी राक्षसी प्रवृत्ति को छोड़कर एक देवी का रूप धारण किया था। यहाँ की स्थानीय जनता उसे देवी के रूप में पूजती है और मानती है कि उनकी कृपा से वे सुरक्षित रहते हैं और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव होता है।
कंस मंदिर, मथुरा
मथुरा में कंस मंदिर का अनोखा इतिहास है, जो भगवान कृष्ण के मामा कंस को समर्पित है। यद्यपि कंस को अत्याचारी माना जाता है, लेकिन इस मंदिर में उसे एक अद्वितीय शक्ति के रूप में पूजते हैं। मान्यता है कि कंस की पूजा करने से लोग अपने जीवन में नकारात्मक शक्तियों और दुश्मनों से बचाव प्राप्त कर सकते हैं।
नरकासुर मंदिर, गोवा
गोवा के पोंडा में स्थित नरकासुर मंदिर राक्षस नरकासुर को समर्पित है, जिसे दीपावली से एक दिन पहले भगवान कृष्ण ने मारा था। यहाँ नरकासुर को बुराई का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की जाती है ताकि जीवन में किसी भी प्रकार की बुरी शक्तियों का प्रभाव कम हो।