ऐसा शिव मंदिर, जहाँ की मिट्टी सांपों के लिए है काल
भारत एक ऐसा देश है जहाँ आप कई प्राचीन मंदिरों के दर्शन कर सकते है। इनमें से कुछ मंदिर ऐसे है जो किसी न किसी रहस्यों से जुड़े हुए है। आज हम आपको उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले में स्थित एक ऐसे शिव मंदिर के बारे में बताने जा रहे है। जहाँ की मिटटी सांपो के लिए काल मानी गयी है। इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व क्या है इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए आइये इस लेख में दी गयी जानकारी को पढ़ते है।
देवकली तीर्थ
यह शिव मंदिर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले में देवकली तीर्थ में स्थित है। इस तीर्थ के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां की मिट्टी जहां रख दी जाए, वहां सांप नहीं आते। यह तीर्थ लखीमपुर शहर से लगभग नौ किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। और इसे राजा जन्मेजय की नाग यज्ञ स्थली के रूप में भी जाना जाता है।
तीर्थ का नाम देवकली कैसे पड़ा
प्राचीन काल में यह स्थान देवस्थली के नाम से जाना जाता था। संस्कृत में “देवस्थली” का अर्थ होता है “देवताओं का स्थान”। अर्थात एक ऐसा स्थान जहाँ समस्त देवी देवताओं का वास हो। समय के साथ साथ स्थानीय लोगों ने अपनी सहजता के लिए देवस्थली को देवकली नाम में परिवर्तित कर दिया। और आज यह स्थान देवकली तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध है।
महाभारत काल से जुड़ा है यह तीर्थ
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा परीक्षित को एक जहरीले तक्षक नाग ने डस लिया था। जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। तब उनके पुत्र राजा जन्मेजय ने अपने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए देवकली तीर्थ पर एक विशाल सर्प यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ का उद्देश्य पूरे नाग वंश का समाप्त करना था।
इस यज्ञ के प्रभाव से तक्षक नाग समेत कई अन्य नाग भी नष्ट होने लगे। जिसके कारण धरती पर सांपों की संख्या में बहुत ही कमी आ गयी। यह देख सभी देवताओं ने राजा जन्मेजय को अपनी प्रतिज्ञा वापस लेने के लिए समझाया। देवताओं की आज्ञा मानकर राजा जन्मेजय ने यज्ञ रोककर बाकी अन्य साँपों को बंधन से मुक्त किया। और तभी से यह स्थान सांपो के लिए काल माना जाने लगा।
देवकली में सर्प कुंड की विशेषता
देवकली तीर्थ में स्थित सर्पकुंड से हवन की भस्म और अन्य अवशेष मिलते हैं। जो राजा जन्मेजय के यज्ञ की कहानी को सत्य प्रमाणित करते हैं। कुंड के आसपास के ऊंचे टीले सांपों की सैकड़ों बांबियों से भरे हुए हैं। इन बाबियों में विभिन्न प्रजातियों के सांप रहते है। इस तीर्थ में एक पक्का सरोवर है। जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है।
नाग पूजा का प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र
देवकली तीर्थ नाग पूजा के लिए महत्वपूर्ण केंद्र माना गया है। कालसर्प दोष निवारण के लिए यहां प्रत्येक नागपंचमी के दिन विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। इस दिन तीर्थ में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। भक्तजन सर्पकुंड की पवित्र मिट्टी अपने घर ले जाते हैं, ताकि उनके घरों में सांप प्रवेश न कर सके।
देवकली तीर्थ तक कैसे पहुंचे
देवकली तीर्थ, जो कि उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में स्थित है। श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। यह स्थान लखीमपुर शहर से लगभग 9 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए आप लखीमपुर शहर से स्थानीय ऑटो-रिक्शा या टैक्सी लेकर सीधे इस तीर्थ तक जा सकते है। लखनऊ से यह तीर्थ लगभग 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
जबकि सीतापुर मात्र 65 किलोमीटर की दूरी तय कर इस तीर्थ तक जाया जा सकता है। यदि आप रेल मार्ग द्वारा तीर्थ तक जाना चाहते है तो सबसे पहले आपको लखीमपुर खीरी रेलवे स्टेशन आना होगा। यह स्टेशन लखनऊ पीलीभीत रेल मार्ग से सीधा जुड़ा हुआ है। लखीमपुर रेलवे स्टेशन आने के बाद आप इस तीर्थ स्थल तक पहुंचने के लिए ऑटो या टैक्सी का उपयोग कर सकते है।
देवकली तीर्थ कब जायें
- नागपंचमी के दिन इस तीर्थ स्थल पर विशेष भीड़ होती है, इसलिए यदि आप इस दिन तीर्थ आने की सोच रहे है। तो पहले से यात्रा की योजना बनाएं।
- श्रावण का पूरा महीना भगवान शिव की पूजा के लिए पवित्र माना जाता है। चूंकि यह स्थान तांत्रिक साधना और नाग पूजा का प्रमुख केंद्र है, सावन के दौरान यहां विशेष ऊर्जा महसूस की जा सकती है।