पौष पुत्रदा एकादशी व्रत, पूजन विधि एवं पूजन सामग्री संबधी समस्त जानकारी
बैकुंठ एकादशी जिसे हिंदू पंचांग में पौष पुत्रदा एकादशी भी कहा गया है। हिन्दू धर्म में इस एकादशी व्रत का अत्यधिक महत्व है। यह पौष मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है, जो भगवान विष्णु का परम धाम है। ऐसी मान्यता है कि यह एकादशी व्रत करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना जल्द पूर्ण होती है। जिस कारण इसे पुत्रदा एकादशी कहा गया है। तो आइये इस चमत्कारी और फलदायी व्रत के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करते है।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
कई वर्षो पूर्व, भद्रावती नामक एक राज्य में राजा सुकेतुमान शासन किया करते थे। वे अत्यंत धर्मनिष्ठ और प्रजा हितकारी राजा थे। किन्तु संतान न होने के कारण राजा सुकेतुमान और उनकी पत्नी रानी शैव्या दोनों चिंतित रहा करते थे।
एक दिन, राजा सुकेतुमान ने अपने मन की अशांति से परेशान होकर वन में जाने का निश्चय किया। वे अपने रथ पर सवार होकर घने जंगलों की ओर बढें। तभी उन्हें एक सुंदर सरोवर दिखाई दिया। जहाँ उन्होंने कुछ ऋषि-मुनियों को वेदों का पाठ और यज्ञ करते देखा। यह दृश्य देखकर राजा ने उन ऋषियों को प्रणाम किया और अपनी व्यथा सुनाई।
ऋषियों ने राजा से कहा, “हे राजन! आप पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को व्रत रहें। यदि आप इस दिन पूरी श्रद्धा से भगवान विष्णु की आराधना करेंगे, तो आपकी मनोकामना जरूर पूर्ण होगी और आपको संतान सुख की प्राप्ति होगी।”
राजा ने तुरंत उस व्रत का संकल्प लिया। पौष एकादशी आते ही उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ उपवास रखा और भगवान विष्णु की पूजा की। राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें संतान सुख प्राप्ति का वरदान दिया। भगवान के आशीर्वाद से कुछ समय बाद रानी शैव्या ने एक तेजस्वी और गुणवान पुत्र को जन्म दिया। इस प्रकार, राजा और रानी की खुशी लौट आई और उनका वंश आगे बढ़ा। और तभी से पौष पुत्रदा एकादशी की महिमा का बखान होने लगा।
व्रत की पूजा विधि
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत को इस प्रकार विधिपूर्वक संपन्न करें।
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और साफ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और वहां भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- भगवान विष्णु के समक्ष दीप जलाएं और धूप-अगरबत्ती अर्पित करें।
- मूर्ति का पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और चीनी) से अभिषेक करें और उसके बाद जल से स्नान कराएं।
- भगवान को फूल और तुलसी पत्र अर्पित करें, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को विशेष प्रिय है।
- फल, मेवा और सात्विक व्यंजनों का भोग लगाएं।
- भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
- पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और भक्तिभाव से उन्हें नमन करें।
एकादशी व्रत पूजा सामग्री
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत में उपयोग होने पूजा सामग्री में निम्नलिखित वस्तुओं के नाम शामिल है।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र
- पंचामृत
- गंगा जल
- तुलसी पत्र
- फूल
- धूप और अगरबत्ती
- दीपक और घी या तेल
- सुपारी
- कच्चा चावल
- सिंदूर और कुमकुम
- रोली या चंदन
- पंचमेवा
- नैवेद्य
- फल
- मिठाई
- पान के पत्ते
भगवान विष्णु को समर्पित मंत्र
इस दिन भगवान विष्णु को समर्पित इन मंत्रो का उच्चारण अवश्य करें।
शांताकारम भुजङ्गशयनम पद्मनाभं सुरेशम।
विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म।
वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकेकनाथम।
ॐ नमोः नारायणाय नमः। ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ बृं बृहस्पतये नम:।
ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:। ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:। ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:। ॐ गुं गुरवे नम:।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व
हिंदू धर्म में एकादशी व्रतों की विशेषताएँ अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र मानी गयी है। जैसे कि – रमा एकादशी, उत्पन्ना एकादशी, देवठनी एकादशी, पौष पुत्रदा एकादशी आदि। इनमें से पौष पुत्रदा एकादशी व्रत संतान सुख की प्राप्ति और संतान के कल्याण के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है। जो दंपत्ति संतान प्राप्ति की इच्छा रखते हैं। उनके लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभकारी माना गया है। साथ ही, जिन्हें संतान है, वे भी इस व्रत के द्वारा अपनी संतान की उन्नति और समृद्धि की कामना कर सकते हैं।
इस व्रत से मिलने वाले लाभ
बैकुंठ एकादशी व्रत से श्रद्धालुओं को अनेक लाभ प्राप्त होते है जोकि इस प्रकार है।
- इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- बैकुंठ एकादशी व्रत संतान के स्वास्थ्य, शिक्षा और समृद्धि में उन्नति करता है।
- इस व्रत से व्यक्ति के सभी जाने-अनजाने में किये गए पाप नष्ट होते हैं और आत्मा शुद्ध होती है।
- यह व्रत सभी प्रकार के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कष्टों से छुटकारा दिलाता है।
- पौष पुत्रदा एकादशी व्रत व्यक्ति को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति कराता है।
भगवान विष्णु जी की चालीसा
नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥
सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥
शंख चक्र कर गदा विराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥
सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥
पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥
आप वाराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥
कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥
वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया ॥
असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई ।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥
देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥
हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥
चाहता आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥
शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥
दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥
सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥
भगवान विष्णु जी की आरती
ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी। स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत 2025
हिन्दू पंचांग के अनुसार इस वर्ष पौष माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 09 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी जोकि 10 जनवरी सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर समाप्त तक रहेगी। सनातन धर्म में व्रतों का पालन उदया तिथि के अनुसार किया जाता है। इस लिए यह एकादशी व्रत इस बार 10 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी।
निष्कर्ष
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। यह एकादशी व्रत भक्तों को बैकुंठ धाम और संतान सुख की प्राप्ति कराता है। लेख में राजा सुकेतुमान की कथा के माध्यम से यह समझाया गया है कि इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। उम्मीद करते है लेख के माध्यम से आपको इस व्रत की पूजा विधि और इसके महत्व की जानकारी प्राप्त हुई होगी।