मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की परम्परा कैसे शुरू हुई ?
हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति ( makar sankranti ) एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन लोग स्नान आदि करके खिचड़ी का दान करते है। तथा खिचड़ी को भोजन के रूप में बनाकर इसका सेवन करते है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन खिचड़ी खाने और दान करने से जीवन में सुख – समृद्धि की वृद्धि होती है और शरीर स्वस्थ रहता है। लेकिन सवाल यह है कि इस पर्व को खिचड़ी से क्यों जोड़ा गया ? क्या है वह पौराणिक कथा जिसने इस दिन को खिचड़ी पर्व के नाम से प्रसिद्ध किया। तो आइये मकर संक्रांति से जुड़ीं जानकारी को इस लेख के द्वारा जानने का प्रयास करते है।
पहली खिचड़ी किसने बनाई ?
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी ने हिन्दुओं के कई मंदिरों और मठों पर आक्रमण कर दिया था। जिसके कारण साधु संतों को कई कई दिनों तक भूखा रहना पड़ता था। उस समय बाबा गोरखनाथ और उनके अनुयायी भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजर रहे थे। साधु – संतों को उपयुक्त भोजन न मिल पाने से उनका शरीर कमजोर होता जा रहा था।
इस समस्या से निपटने के लिए बाबा गोरखनाथ ने एक उपाय सोचा। उन्होंने दाल, चावल और कुछ सब्जियों को एक साथ मिलाकर पकाया। इस व्यंजन को उन्होंने ” खिचड़ी ” नाम दिया। खिचड़ी खाने से साधु – संतों को पुनः ऊर्जा प्राप्त हुई और इस कठिन समय में उन्होंने धैर्य से कार्य किया।
खिचड़ी खाने और दान करने की परंपरा
मकर संक्रांति के दिन, बाबा गोरखनाथ और उनके अनुयायियों ने खिलजी के आक्रमण से उबरने के बाद इसे उत्सव के रूप में मनाया और लोगों में खिचड़ी बाँटी। तब से ही इस दिन खिचड़ी बनाने और दान करने की परंपरा का प्रारंभ हुआ। मकर संक्रांति पर खिचड़ी दान करने का मुख्य उद्देश्य है सभी को भर पेट भोजन का लाभ और पौष्टिक आहार की प्राप्ति हो।
खिचड़ी के दान करने का एक अन्य कारण यह भी है कि सर्दियों के मौसम में शरीर की ऊर्जा अधिक खर्च होती है। जिसकी वजह से हमारे शरीर को एक ऐसे आहार की आवश्यकता होती है जिसमें सम्पूर्ण पौष्टिक तत्व शामिल हो। खिचड़ी में मिलने वाले सभी तत्व पोषण से भरपूर होते हैं, जो सर्दियों में शरीर को गर्माहट और ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसलिए इसे खाने और दान करने का विशेष महत्त्व है।
मकर सक्रांति के दिन अन्य परम्पराएं
मकर संक्रांति के दिन को लेकर हिन्दू धर्म में अलग अलग परम्पराएं प्रचलित है। जोकि इस प्रकार है।
1 - तिल खाने की परम्परा
मकर संक्रांति के दिन तिल खाने और दान करने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। श्रीमद्भागवत और श्रीदेवी भागवत महापुराण के अनुसार, भगवान शनिदेव और उनके पिता सूर्यदेव के बीच सदैव तनाव रहता था। इसका कारण यह था कि सूर्यदेव अपनी पत्नी छाया, पुत्र शनि और पुत्रवधु संज्ञा से भेदभाव करते रहते थे। इस पर क्रोधित होकर शनिदेव ने अपने पिता सूर्यदेव को कुष्ठरोग होने का श्राप दे दिया।
पुत्र द्वारा दिए गए श्राप से भगवान सूर्य देव क्रोधित हो उठे और उन्होंने शनिदेव की राशि, कुंभ राशि, को जला दिया। लेकिन बाद में, अपने पुत्र को इस कष्ट में देखकर सूर्यदेव को पछतावा हुआ। जब उन्होंने कुंभ राशि में देखा, तो वहां तिल के अलावा बाकी सबकुछ जल चुका था। इसके बाद शनिदेव ने तिल से सूर्यदेव को भोग लगाया, जिससे उनकी स्थिति में सुधार हुआ और उन्हें पुनः अपनी शक्तियाँ प्राप्त हुई। यही कारण है कि मकर संक्रांति के दिन तिल का सेवन और दान करना अत्यंत शुभ माना गया है।
2 - दही-चूड़ा खाने की परम्परा
भारत में कई राज्यों में विशेषकर बिहार और उत्तर प्रदेश में, मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा खाने का प्रचलन है। मान्यता है कि इस दिन दही-चूड़ा का सेवन करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य उत्तम रहता है। और रिश्तों में मिठास बनी रहती है। वैज्ञानिक तौर पर इस तथ्य को समझे तो चूड़ा (पोहा) और दही को एक साथ खाने से सर्दियों के मौसम में शरीर ऊर्जावान बना रहता है। इस दिन दही – चूड़े का भोग सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। जिससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं।
3 - पतंग उड़ाने की परम्परा
कहा जाता है कि भगवान श्रीराम अपने बाल्यकाल में अत्यंत चंचल और रचनात्मक स्वभाव के थे। वे अपनी लीलाओं से माता-पिता और अपने आसपास के लोगों को प्रसन्न रखते थे। एक बार मकर संक्रांति के दिन भगवान राम ने पतंग उड़ाने का निर्णय लिया। उनके बाल सुलभ उत्साह और कौशल के कारण पतंग बहुत ऊँचाई तक पहुंच गई।
पतंग उड़ते-उड़ते इतनी ऊँचाई पर पहुँच गई कि वह इंद्रलोक में जा पहुंची। इंद्रलोक में उपस्थित देवी-देवताओं ने जब इस दृश्य को देखा, तो वे हर्षित हो उठे। वे समझ गए कि यह किसी साधारण व्यक्ति की पतंग नहीं है। बल्कि स्वयं भगवान श्रीराम की लीला है। इस घटना से देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने भगवान राम की प्रशंसा की।
मकर संक्रांति से जुड़ीं है ये कुछ पौराणिक घटनायें
हिन्दू धर्म में मकर संक्रांति ( makar sankranti ) को अत्यंत पवित्र दिन माना गया है। धार्मिक ग्रंथों में इस दिन के सम्बन्ध में कुछ विशेष पौराणिक घटनाओं का वर्णन किया गया है। जोकि इस प्रकार है।
1 - सूर्य का उत्तरायण में प्रवेश
मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य धनु राशि छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। और इसी दिन से उत्तरायण समय का आरंभ होता है। उत्तरायण काल को शुभ समय का प्रतीक माना गया है। श्रीमदभगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उत्तरायण समय के महत्व को विस्तार से बताया गया है।
2. भीष्म पितामह ने त्यागा था शरीर
कौरवों -पांडवों के मध्य हुए भीषण युद्ध महाभारत में भीष्म पितामह को बाणों से छलनी किया गया था। लेकिन इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त पितामह ने उत्तरायण काल प्रारम्भ होने का इंतजार किया। मकर संक्रांति ( makar sankranti ) के दिन उत्तरायण समय प्रारम्भ होते ही उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन देह त्याग करने से आत्मा सीधा परमधाम जाती है।
3. गंगा नदी का धरती पर अवतरण
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा भागीरथ की तपस्या के फलस्वरूप माता गंगा ने मकर संक्रांति के दिन ही स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण किया। और कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा ने सागर में जाकर खुद को मिला लिया। यह स्थान गंगा सागर के नाम से प्रसिद्द है। जहाँ प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन कई धार्मिक अनुष्ठान और मेले का आयोजन किया जाता है।
4. भगवान विष्णु ने किया असुरों का संहार
मकर संक्रांति ( makar sankranti ) के दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार कर उनके सिरों को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया। यह घटना बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म की स्थापना का प्रतीक है।
5. राजा सगर के पुत्रों की मुक्ति
मकर संक्रांति ( makar sankranti ) के दिन गंगा नदी के स्पर्श से राजा सगर के 60,000 पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ। इसलिए इस दिन लोग गंगा नदी में स्नान कर अपने पूर्वजों का तर्पण करते है।
किसानों के लिए “ खिचड़ी ” पारम्परिक त्योहार
मकर संक्रांति का पर्व प्रतिवर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करते ही मौसम में बदलाव आने लगता है। रबी के फसलें पकने लगती है। और किसान अपनी फसल की अच्छी पैदावार का जश्न इस त्योहर के द्वारा मनाते हैं।
वर्ष 2025 में मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त
वर्ष 2025 में मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त सुबह 9:03 बजे से लेकर शाम 5:46 बजे तक रहेगा। इस अवधि में आप स्नान आदि कर खिचड़ी का दान कर सकते है। और खिचड़ी का भोजन कर इस दिन की महत्वता को बढ़ा सकते है। आप इस दिन गरीबों और ब्राह्मणों को तिल, चावल, गुड़, कंबल और अन्य उपयोगी वस्तुओं का दान भी कर सकते है। ऐसा करने से पितृ दोष समाप्त होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति ( makar sankranti ) पर खिचड़ी बनाने और दान करने की परंपरा बाबा गोरखनाथ की शिक्षा, समाजसेवा की भावना और ऋतु परिवर्तन के साथ जुड़ी हुई है। यह पर्व सामाजिक एकता, सहयोग और पोषण की आवश्यकता को दर्शाता है। खिचड़ी का दान एक ऐसा प्रतीक है जो सभी को यह सिखाता है कि साधारण भोजन में भी संतोष और करुणा का भाव समाहित हो सकता है। इस प्रकार मकर संक्रांति का पर्व हमें सिर्फ सूर्य की मकर राशि में प्रवेश की ज्योतिषीय घटना का ही संदेश नहीं देता, बल्कि सेवा और त्याग का भी पाठ पढ़ाता है।