महाशिवरात्रि पर महाकुंभ का अंतिम शाही स्नान
प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ 2025 अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है। 26 फरवरी, महाशिवरात्रि के दिन, संगम पर होने वाले अंतिम शाही स्नान के साथ ही इस आयोजन का समापन हो जाएगा। यह दिन भगवान शिव के भक्तों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति को जीवन की सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है और ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।
महा शिवरात्रि स्नान हिन्दू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है, जो भगवान शिव की पूजा और आराधना के लिए समर्पित होता है। यह पर्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चौदहवीं रात को मनाया जाता है, जो आमतौर पर फरवरी या मार्च महीने में पड़ता है। महाशिवरात्रि के दिन विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा, उपवासी व्रत, और रात्रि जागरण की परंपरा होती है।
प्रयागराज महाकुंभ 2025 13 जनवरी से शुरू हो रहा है और आखिरी शाही स्नान 26 फरवरी को महा शिवरात्रि के दिन और इसके साथ महाकुंभ का समापन हो जाएगा| महाकुंभ में शाही स्नान का बहुत महत्व होता है|
महाकुंभ में शाही स्नान का महत्व
“महाकुंभ का आयोजन हर 12 वर्षों में किया जाता है। 2025 में महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक किया जाएगा। इस दौरान करोड़ों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान करके अपना जीवन धन्य करेंगे।
महाकुंभ में किए गए स्नान, दान और पूजा को मोक्ष प्राप्ति का माध्यम माना गया है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। साथ ही, इस दिन किया गया दान-पुण्य भी विशेष फलदायक होता है। मान्यता है कि इस दिन किए गई स्नान दान से सिर्फ ईश्वर ही नहीं, बल्कि पितरों का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।”
प्रयागराज महाकुंभ 2025 के आयोजन की तैयारी आखिरी चरण में हैं, हिंदू शास्त्रों में महाकुंभ में शाही स्नान का बहुत महत्व बताया गया है| शाही स्नान पर यूं तो सबसे पहले अखाड़े स्नान करते हैं, लेकिन आम जनमानस को भी इस दिन स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. आइये आगे आपको बताते हैं महाकुंभ 2025 में कब-कब शाही स्नान हैं. और आखिरी शाही स्नान का विशेष महत्व क्यों होता है|
महाकुंभ 2025 का पहला शाही स्नान 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के दिन हैं, दूसरा शाही 14 जनवरी मकर संक्रांति, तीसरा शाही स्नान मौनी अमावस्या 29 जनवरी, चौथा शाही स्नान 3 फरवरी बसंत पंचमी, पांचवा शाही स्नान 13 फरवरी माघ पूर्णिमा और आखिरी शाही स्नान 26 फरवरी महाशिव रात्रि के दिन हैं. आइये आपको बताते हैं महाशिव रात्रि का महत्व, पूजा और दान-पुण्य का का मुहूर्त क्या है|
महाशिवरात्रि का महत्व
हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का त्योहार अत्यधिक पवित्र माना जाता है. फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाने वाली यह रात भगवान शिव और मां पार्वती के मिलन की प्रतीक है. मान्यता है कि महाशिव रात्रि के दिन विधि विधान से व्रत और पूजा पाठ करने भोलेनाथ अपने भक्तों को विशेष फल प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं.
महा शिवरात्रि 2025 की सही तारीख
फाल्गुन महीने की चतुर्दशी तिथि 26 फरवरी 2025 को सुबह 11:08 बजे शुरू होगी और 27 फरवरी को सुबह 8:54 बजे समाप्त होगी. इसलिए उदया तिथिनुसार व्रत 26 फरवरी के दिन ही रखा जाएगा.
जलाभिषेक का महत्व और समय
महाशिवरात्रि पर ब्रह्म मुहूर्त में जलाभिषेक का विशेष महत्व होता है. 2025 में ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:09 बजे तक रहेगा, जो पूजा और आराधना के लिए सबसे शुभ समय है. जलाभिषेक साथ साधक व्रत का संकल्प लें और पूरा दिन नियम और वचन से पवित्र रहकर संध्या को व्रत का पारण सात्विक के साथ करें.
शिव योग का निर्माण
इस बार 2025 की महाशिवरात्रि पर परिघ योग और शिव योग बन रहा है. ये योग पूरे दिन शुभ रहेंगे और भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए आदर्श माने जाते हैं. इस दिन अगर आपक महाकुंभ प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेते हैं तो आपको विशेष फल की प्राप्ति होगी|
शुभ नक्षत्रों का संयोग
इस महाशिवरात्रि पर श्रवण नक्षत्र शाम 5:23 बजे तक रहेगा, इसके बाद घनिष्ठा नक्षत्र शुरू होगा. यह विशेष संयोग पूजा के प्रभाव को बढ़ाने वाला है. इसलिए इस दौरान पूरे विधि विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें और प्रसाद का वितरण कर खुद भी ग्रहण करें
पूजा विधि और अनुष्ठान
महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखकर भगवान शिव का जलाभिषेक और बेलपत्र, धतूरा, भस्म, और अक्षत अर्पित करना शुभ माना जाता है. रातभर शिव मंत्रों का जाप करने से विशेष फल प्राप्त होता है| इस अवसर पर भगवान शिव का अभिषेक अनेकों प्रकार से किया जाता है।
जलाभिषेक : जल से और दुग्धाभिषेक : दूध से।
बहुत जल्दी सुबह-सुबह भगवान शिव के मन्दिरों पर भक्तों, जवान और बूढ़ों का ताँता लग जाता है वे सभी पारम्परिक शिवलिंग पूजा करने के लिए जाते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं। भक्त सूर्योदय के समय पवित्र स्थानों पर स्नान करते हैं जैसे गंगा, या (खजुराहो के शिव सागर में) या किसी अन्य पवित्र जल स्रोत में। यह शुद्धि के अनुष्ठान हैं, जो सभी हिन्दू त्योहारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पवित्र स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहने जाते हैं, भक्त शिवलिंग स्नान करने के लिए मन्दिर में पानी का बर्तन ले जाते हैं महिलाओं और पुरुषों दोनों सूर्य, विष्णु और शिव की प्रार्थना करते हैं मन्दिरों में घण्टी और “शंकर जी की जय” ध्वनि गूँजती है। भक्त शिवलिंग की तीन या सात बार परिक्रमा करते हैं और फिर शिवलिंग पर पानी या दूध भी डालते हैं।हलाकि इन सभी अनुष्ठान का वर्णन हमारे पवित्र शास्त्रों में कहीं पर भी नही है, जिससे यह शास्त्रानुकूल साधना नही है।
शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि पूजा में छह वस्तुओं को अवश्य शामिल करना चाहिए –
- शिव लिंग का पानी, दूध और शहद के साथ अभिषेक।
- बेर या बेल के पत्ते जो आत्मा की शुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं|
- सिंदूर का पेस्ट स्नान के बाद शिव लिंग को लगाया जाता है। यह पुण्य का प्रतिनिधित्व करता है|
- फल, जो दीर्घायु और इच्छाओं की सन्तुष्टि को दर्शाते हैं|
- जलती धूप, धन, उपज (अनाज)|
- दीपक जो ज्ञान की प्राप्ति के लिए अनुकूल है|
- और पान के पत्ते जो सांसारिक सुखों के साथ सन्तोष अंकन करते हैं।
- अभिषेक में निम्न वस्तुओं का प्रयोग नहीं किया जाता है|
- तुलसी के पत्ते
- हल्दी
- चंपा और केतकी के फूल|
आध्यात्मिक एवं अन्य पारम्परिक साधना
महाशिवरात्रि केवल पूजा का ही नहीं, बल्कि आत्मा की शुद्धि और ध्यान साधना का दिन भी है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की आराधना से आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति प्राप्त होती है|
बारह ज्योतिर्लिंग (प्रकाश के लिंग) जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केन्द्र हैं। वे स्वयम्भू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है “स्वयं उत्पन्न“। बारह स्थानों पर बारह ज्योर्तिलिंग स्थापित हैं।
- सोमनाथ यह शिवलिंग गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है।
- श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के किनारे पर्वत पर स्थापित है श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग।
- महाकाल उज्जैन के अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहाँ शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
- ॐकारेश्वर मध्यप्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से खुश होकर वरदान देते हुए यहां प्रकट हुए थे शिवजी। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित हो गया।
- नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
- बैजनाथ झारखंड के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
- भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।
- त्र्यंम्बकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्र्यंम्बकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
- घृष्णेश्वर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफा के समीप वेसल गाँव में स्थापित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग।
- केदारनाथ हिमालय का दुर्गम केदारनाथ ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 पर मिल दूरी पर स्थित है।
- काशी विश्वनाथ बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
- रामेश्वरम् त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग।
महाशिवरात्रि से जुडी पौराणिक कथाएँ
महाशिवरात्रि से सम्बन्धित कई पौराणिक कथाएँ है:
समुद्र मन्थन
अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित था, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्माण्ड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कण्ठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव अत्यधिक दर्द से पीड़ित हो उठे थे और उनका गला नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव ‘नीलकण्ठ’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जगाये रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान शिव के चिन्तन में एक सतर्कता रखी। शिव को आनंदित करने और जागाये रखने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाये। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है।
शिकारी कथा
एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’ उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- ‘एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।'”
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’ शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिन्ता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसरथा। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे पारधी!’ मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे शिकारी हँसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरन्त लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलम्ब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊँगा।
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किन्तु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवम् सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवम् दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।
निष्कर्ष
महाशिवरात्रि और महाकुंभ का अंतिम शाही स्नान आध्यात्मिक शुद्धि और पुण्य प्राप्ति का श्रेष्ठ अवसर है। प्रयागराज महाकुंभ 2025 का यह अंतिम शाही स्नान 26 फरवरी को होगा, जिसमें लाखों श्रद्धालु संगम में आस्था की डुबकी लगाएंगे। यह दिन भगवान शिव की भक्ति, व्रत, दान और साधना के लिए विशेष माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन किए गए स्नान और पूजा से व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है। महाकुंभ का यह भव्य आयोजन भक्तों को शिव तत्व से जोड़ता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।