भारतीय संस्कृति में माघ स्नान का महत्व

भारतीय संस्कृति में माघ माह का महत्व

भारतीय संस्कृति में बारह महीने का एक चक्र होता है, जिसमें प्रत्येक महीने का अपना विशेष महत्व है। इन बारह महीनों में माघ मास को सर्वश्रेष्ठ महीना माना जाता है।मान्यता है कि माघ माह में देवता धरती पर आकर मनुष्य रूप धारण करते हैं और प्रयाग में स्नान करने के साथ ही दान और जप करते हैं। इसीलिए प्रयाग में स्नान का खास महत्व है। जहां स्नान करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस तिथि का महत्व और बढ़ जाता है।

पौष के बाद माघ माह प्रारंभ होगा। हिन्दू पंचांग अनुसार भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चन्द्रमास और दसवां सौरमास माघ कहलाता है। इस महीने में मघा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने से इसका नाम माघ पड़ा। पुराणों में माघ मास के महात्म्य का वर्णन मिलता है। इस माह के प्रारंभ होते ही मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे और गंगा-यमुना के किनारे माघ मेले का प्रारंभ भी हो जाएगा।

इस वर्ष माघ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 29 जनवरी 2025 को पड़ रही है। प्रयागराज में महाकुंभ के आयोजन से इस साल मौनी अमावस्या का महत्व और भी बढ़ गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मौनी अमावस्या पर मौन रहते हुए गंगा, यमुना समेत अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ फलदायी होता है। माघ मास में दान को अत्यंत शुभ माना गया है।

स्नान का महत्व

धार्मिक दृष्टिकोण से इस मास का बहुत अधिक महत्व है। इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो जाते हैं। माघ मास या माघ पूर्णिमा को संगम में स्नान का बहुत महत्व है। संगम नहीं तो गंगा, गोदावरी, कावेरी, नर्मदा, कृष्णा, क्षिप्रा, सिंधु, सरस्वती, ब्रह्मपुत्र आदि पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए। इस मास में अन्न, वस्त्र और धन का दान करने से व्यक्ति के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं | माघ मास का स्नान विशेष रूप से मोक्षदायी माना गया है। माघ मास में सूर्योदय से पहले गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व है। इसे ‘माघ स्नान’ कहा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार माघ स्नान से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और उसके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

स्नान करने के दौरान आप इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं | 

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर:शुचि:।।

गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति, नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिं कुरू।

भास्कराय विद्महे । महद्द्युतिकराय धीमहि । तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्। 

आप अपने इष्टदेव का मंत्र भी जाप कर सकते हैं।

अश्वमेघ यज्ञ के बराबर मिलता है पुण्य

 माघ पूर्णिमा पर देश की नदियों में स्नान के लिए लोगों की भीड़ लगती है। खासकर, प्रयाग में माघ स्नान को काफी पुण्य दायक बताया गया है। कहा जाता है कि यदि आप प्रयाग के संगम में माघ मास में तीन बार स्नान करते हैं तो आपको वह पुण्य फल प्राप्त होता है, जो 10 हजार अश्वमेध यज्ञ करने से भी नहीं मिलता।

 प्रयागे माघमासे तुत्र्यहं स्नानस्य यद्रवेत्।

दशाश्वमेघसहस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।

पद्मपुराण में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है। इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए।

माघे निमग्नाः सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।

ग्रहों की स्थिति होती है मजबूत

ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है कि पूर्णिमा तिथि पर जल और प्रकृति में विशेष तरह की ऊर्जा आ जाती है। इस दिन स्नान करने से कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत हो जाती है और सभी तरह के दोष भी दूर हो जाते हैं। स्नान करने के बाद पवित्र नदी में खड़े होकर सूर्य को जल का अर्घ्य देने से सूर्य देव की कृपा बनी रहती है और जीवन में मंगल ही मंगल बना रहता है।

प्रसन्न होते हैं भगवान विष्णु

पद्म पुराण में माघ मास की पूर्णिमा के महत्व का वर्णन करते हुए लिखा गया है, माघ पूर्णिमा में प्रयागराज में स्नान करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और सभी पापों से मुक्ति प्रदान करके उस पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। अगर संगम में स्नान संभव नहीं है तो गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र आदि पवित्र नदियों में स्नान कर सकते हैं।

माघ मास में यहां स्नान करने से अर्थ काम मोक्ष और धर्म चारों की प्राप्ति हो जाती है। इस स्थान पर स्नान करने से कभी भी मनुष्य की अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी घाट पर विष्णु के पद चिन्ह होने की बात भी कही जाती है। 

नहीं सताता अकाल मृत्यु का भय

यदि आप प्रयाग में माघ पूर्णिमा के समय संगम में स्नान करते हैं तो आपको अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माघ मास की पूर्णिमा तिथि पर स्नान का महत्व इस बात से लगा सकते हैं कि जो व्यक्ति प्रयाग में स्नान कर लेता है, उसे अकाल मृत्यु की आशंका नहीं रहती है। वह इससे मुक्त हो जाता है।

मोक्ष प्राप्ति का सबसे सरल उपाय

धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है कि यदि आप माघ पूर्णिमा के दिन प्रयाग के संगम में स्नान करते हैं तो आपको भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होगा। भगवान वासुदेव की कृपा से व्यक्ति को सुख, सौभाग्य, धन, संतान की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद व्यक्ति को मोक्ष भी मिल जाता है। वह जन्म और मरण के चक्र से मुक्त होकर भगवान श्रीहरि के चरणों में स्थान प्राप्त करता है।

रामचरितमानस में मिलता है माघ स्नान का वर्णन

रामचरितमानस में माघ मास के महत्व को बड़े ही सुंदर शब्दों में व्यक्त किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि जो व्यक्ति माघ मास में एक महीने तक गंगा नदी में स्नान करता है, उसे मकर नहाय कहा जाता है। माघ स्नान का सर्वश्रेष्ठ समय प्रातःकाल चार से छह बजे के मध्य माना जाता है। विशेषकर संगम में स्नान करने का बहुत महत्व है। इस एक महीने के निवास को कल्पवास कहा जाता है।

शास्त्रों के अनुसार, माघ मास में किया गया स्नान सभी प्रकार के पापों का नाश करने वाला होता है। चाहे वे जानबूझकर किए गए हों या अनजाने में। माघ स्नान न केवल व्यक्तिगत पापों का नाश करता है बल्कि उसके पूरे परिवार पर भी आशीर्वाद बरसाता है। चूंकि कल्पवास आमतौर पर परिवार का मुखिया ही करता है, इसलिए इसका लाभ पूरे परिवार को मिलता है।

वहीं, अगर जो जातक लगातार 1 माह तक स्नान नहीं कर राते हैं, तो आप कुछ ऐसे विशेष तिथियां हैं। जिसमें आप स्नान करके पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। आप  बसंत पंचमी, अमावस्या, नवमी, एकादशी इन तिथियों पर स्नान कर सकते हैं। 

कल्पवास में सत्संग और स्वाध्याय

माघ माह में नदी के किनारा कल्पावास किया जाता है। कल्पवास के दौरान माघ माह में मंदिरों, आश्रमों, नदी के तट पर सत्संग, प्रवचन के साथ माघ महात्म्य तथा पुराण कथाओं का आयोजन होता है। आचार्य विद्वानों द्वारा धर्माचरण की शिक्षा देने वाले प्रसंगों को श्रोताओं के समक्ष रखा जा रहा है। कथा प्रसंगों के माध्यम से तन-मन की स्वस्थता बनाए रखने के लिए अनेक प्रसंग सुना जाता हैं। सत्संग से धर्म का ज्ञान प्राप्त होता है। धर्म के ज्ञान से जीवन की बाधाओं से मुकाबला करने का समाधान मिलता है।

इसके साथ ही स्वाध्याय का महत्व है। स्वाध्यय के दो अर्थ है। पहला स्वयं का अध्ययन करना और दूसरा धर्मग्रंथों का अध्ययन करना। स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। अच्छे विचारों का अध्ययन करना और इस अध्ययन का अभ्यास करना। आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें, वह सब कुछ जिससे आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हो साथ ही आपको इससे खुशी भी मिलती हो। तो बेहतर किताबों को अपना मित्र बनाएं।

 दान का महत्व 

माघ महीने की शुक्ल पंचमी से वसंत ऋतु का आरंभ होता है और तिल चतुर्थी, रथसप्तमी, भीष्माष्टमी आदि व्रत प्रारंभ होते हैं। माघ शुक्ल चतुर्थी को उमा चतुर्थी कहता जाता है। शुक्ल सप्तमी को व्रत का अनुष्ठान होता है। माघ कृष्ण द्वादशी को यम ने तिलों का निर्माण किया और दशरथ ने उन्हें पृथ्वी पर लाकर खेतों में बोया था। अतएव मनुष्यों को उस दिन उपवास रखकर तिलों का दान कर तिलों को ही खाना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है।

मेला का आयोजन

 माघ मास में कई जगहों पर मेला लगता है। खासकर प्रयाग में संगम पर और पश्‍चिम बंगांल में गंगा सागर में मेला लगता है। इसके अलावा माघ पूर्णिमा पर छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर राजिम का मेला लगता है। इसी तरह से सोनकुंड मेले का आयोजन भी होता है। यह मेला माघी पूर्णिमा के अवसर पर छत्तीसगढ़ में आयोजित होता है। देशभर में कई तरह के मेलों का आयोजन होता है। जैसे कुंभ मेला, माघी मेला, राजिम मेला, सूरजकुंड मेला आदि।

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