गोला गोकर्णनाथ एक तीर्थस्थल

गोला गोकर्णनाथ एक तीर्थस्थल

क्या आपने कभी सोचा है कि वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर को इतना पवित्र क्यों माना जाता है? यह स्थान भगवान शिव का प्रमुख ज्योतिर्लिंग है और मोक्ष की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। लेकिन उत्तर प्रदेश में ही एक और मंदिर है, जिसे “छोटी काशी” कहा जाता है – गोला गोकर्णनाथ मंदिर।

यह मंदिर लखीमपुर खीरी जिले में स्थित है और इसे गोकर्णनाथ महादेव का धाम माना जाता है। शिव भक्तों के लिए इसका महत्व काशी विश्वनाथ मंदिर के समान है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, रावण ने यहां भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। यही कारण है कि यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र है। श्रावण मास और महाशिवरात्रि के दौरान इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु गंगा जल लेकर जलाभिषेक के लिए आते हैं। लखीमपुर खीरी के गोला गोकर्णनाथ का पौराणिक शिव मंदिर शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। प्राचीन और अद्भुत शिवलिंग की स्थापना का प्रसंग रामायण काल से जुड़ा है| 

अगर आप भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं और आध्यात्मिक शांति की तलाश में हैं, तो गोला गोकर्णनाथ मंदिर की यात्रा अवश्य करें। यह स्थान आपको काशी विश्वनाथ की ही भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव कराएगा।

गोकर्णनाथ का इतिहास

ऐसा माना जाता है कि वर्तमान शहर में दो कस्बे थे, एक का नाम गोकरन नाथ (वर्तमान शिव मंदिर) था और दूसरे का नाम गोल्लीहारा था। गोल्लीहारा में अकाल के कारण आम जनता मंदिर के पास रहने लगी। समय के साथ, इसका नाम बदलकर गोल्ली और फिर गोला हो गया। इन दो कस्बों (या गांवों) के विलय से बने नए शहर को गोला गोकरन नाथ कहा जाता है।

एक धारणा यह भी है कि 1700 के दशक के अंत या 1800 के दशक में कुछ लोग जिन्हें अंग्रेजों ने अपराधी घोषित कर दिया था, उनसे बचने के लिए साधुओं के रूप में मंदिर और उसके आसपास बस गए थे। इस वजह से मोहम्मदी रियासत पर अंग्रेजों का दबाव था, क्योंकि यह मोहम्मदी का हिस्सा था। इस वजह से मोहम्मदी के राजा ने इस शहर को छोड़ दिया और नियमित रूप से राजस्व एकत्र करना बंद कर दिया। बाद में अंग्रेजों ने इसे खीरी जिले में शामिल कर लिया।

गोला गोकर्णनाथ से जुड़ी अद्भुत कथाएँ

मान्यता है कि भगवान शंकर ने यहां मृग रूप में विचरण किया था। वराह पुराण में लिखा है कि भगवान शिव वैराग्य उत्पन्न होने पर यहां के वन क्षेत्र में भ्रमण करते हुए, रमणीय स्थल पाकर यहीं रम गए। ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र को चिंता हुई और वे उन्हें ढूंढते हुए यहां पहुंचे तो यहां वन में एक अद्भुत मृग को सोते देख समझ गए कि यही शिव हैं। वे जैसे ही उनके निकट गए तो आहट पाकर मृग भागने लगा|

पौराणिक प्रसंग के अनुसार देवताओं ने उनका पीछा कर उनके सींग पकड़ लिए तो सींग तीन टुकड़ों में बंट गया। सींग का मूल भगवान विष्णु ने यहां स्थापित किया, जो गोकर्णनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सींग का दूसरा टुकड़ा ब्रह्मा जी ने बिहार के श्रंगवेश्वर में स्थापित किया। तीसरा टुकड़ा देवराज इंद्र ने अमरावती में स्थापित किया। यहां के महात्म्य का वर्णन शिव पुराण, वामन, पुराण, कूर्म पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है।

रामायण काल से जुड़ी है गोकर्णनाथ शिवलिंग की कथा

पौराणिक शिव मंदिर से जुड़ी एक लोक मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में राम-रावण युद्ध ने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया ताकि वो युद्ध जीत सके| शिवजी ने रावण को शिवलिंग लंका में स्थापित करने के लिए कहा|    भगवान शिव ने शर्त रखी कि उन्हें रास्ते में कहीं भी रखा, तो वह उसी स्थान पर स्थापित हो जाएंगे। शर्त के अनुसार रावण भगवान शिव को लेकर लंका के लिए चला। जब रावण गोला गोकर्णनाथ के पास पहुंचा तो उसे लघुशंका का अनुभव हुआ। 

रावण एक गड़रिये को शिवलिंग पकड़ने को कहा। गड़रिया का रूप धारण करके स्वयं भगवान विष्णु आये थे,कहते हैं कि भगवान शिव ने अपना वजन बढ़ा दिया और गड़रिये को शिवलिंग नीचे रखना पड़ा। रावण को भगवान शिव की चालाकी समझ में आ गयी और वह बहुत क्रोधित हुआ। रावण समझ गया कि शिवजी लंका नहीं जाना चाहते ताकि राम युद्ध जीत सकें। क्रोधित रावण ने अपने अंगूठे से शिवलिंग को दबा दिया जिससे उसमें गाय के कान (गौ-कर्ण) जैसा निशान बन गया।

शिवलिंग पर गाय के कान की आकृति जैसा प्रतीत होने पर मंदिर गोकर्णनाथ नाम से प्रसिद्ध हुआ | गड़रिये को मारने के लिए रावण ने उसका पीछा किया।अपनी जान बचाने के लिए भागते समय वह एक कुएं में गिर कर मर गया। वह जगह आज भूतनाथ के नाम से प्रसिद्ध है, आज भी हर साल श्रावण मास  वहाँ पर मेला लगता है और लाखों भक्त शिवलिंग के दर्शन के लिए यहां आते हैं|

गोला गोकर्णनाथ मंदिर: पूजा और त्योहार

गोला गोकर्णनाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि श्रद्धा और भक्ति का जीवंत केंद्र है। पूरे वर्ष यहां विभिन्न पूजा और त्योहारों का आयोजन होता है, जिनमें हजारों भक्त भाग लेते हैं। इन उत्सवों के दौरान मंदिर परिसर भक्तिमय माहौल से भर जाता है।

1. चेती मेला (Chaiti Mela)

चेती मेला मंदिर का प्रमुख आकर्षण है, जो चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) में पूरे एक महीने तक चलता है। यह मेला न केवल धार्मिक आयोजन होता है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रद्धालु इस दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और शिव कृपा प्राप्त करते हैं।

2. महाशिवरात्रि (Maha Shivratri)

अन्य शिव मंदिरों की तरह, गोला गोकर्णनाथ मंदिर में भी महाशिवरात्रि का पर्व अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं। रात्रि जागरण, भजन-कीर्तन और अभिषेक इस पर्व की प्रमुख विशेषताएं हैं।

3. सावन मेला (Sawan Mela)

श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में इस मंदिर का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इस दौरान लाखों श्रद्धालु यहां कांवड़ यात्रा के लिए आते हैं। कांवड़िए पहले तीर्थ सरोवर में स्नान कर खुद को शुद्ध करते हैं, फिर मंदिर में जलाभिषेक करते हैं।

श्रावण मास और गंगा जल चढ़ाने की परंपरा का पौराणिक महत्व:
हिंदू मान्यता के अनुसार, जब समुद्र मंथन हुआ, तो उसमें से हलाहल (विष) निकला। भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए उसे अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे “नीलकंठ” कहलाए। इस विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने शिवजी पर गंगा जल चढ़ाया। तभी से श्रावण मास में शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है।

इस 30 दिनों तक चलने वाले मेले में हर साल 10-15 लाख श्रद्धालु गोकर्णनाथ धाम में दर्शन के लिए आते हैं।

शिव भक्ति का दिव्य केंद्र

गोला गोकर्णनाथ मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम है। चाहे चेती मेला हो, महाशिवरात्रि या सावन मेला, हर अवसर पर यह मंदिर शिव भक्तों के लिए एक अनोखा अनुभव प्रदान करता है। अगर आप भगवान शिव की कृपा पाना चाहते हैं, तो इस मंदिर की यात्रा अवश्य करें! 

मंदिर की भौगोलिक स्थिति

मंदिर तीनों ओर से वनों से आच्छादित छोटी काशी की परिधि में गोमती, कठिना, उल्ल, सरस्वती, सरायन आदि नदियां प्रवाहित होती रही हैं। रेलवे स्टेशन से शिव मंदिर की दूरी 390 मीटर है। मंदिर का क्षेत्रफल करीब 5000 वर्ग मीटर है। शिवमंदिर के तीन द्वार हैं। धरातल से गर्भ गृह की गहराई नौ फीट है। अष्टकोणीय गर्भगृह में शिवलिंग डेढ़ फीट गहराई में स्थापित है। गोकर्ण तीर्थ का क्षेत्रफल 5300 वर्ग मीटर है।

सम्बंधित तीर्थ स्थल (लैंडमार्क)

गोला अपने शिव मंदिर के लिए प्रसिद्ध है । मंदिर में दर्शन करने और पवित्र स्थान के दर्शन पाने के लिए दूर-दूर से कई लोग यहाँ आते हैं। हिंदू पवित्र महीने श्रावण के दौरान मंदिर में जगह मिलना मुश्किल है । धार्मिक महत्व के अन्य क्षेत्र लक्ष्मी-नारायण मंदिर और डिग्री कॉलेज के पास भूत नाथ मंदिर हैं। यहां कई कॉलेज और स्कूल हैं। यहां तीर्थ कॉलोनी, लक्ष्मी नगर कॉलोनी, मिल रोड पर तिवारी मार्केट, पंजाबी कॉलोनी, राघव कुंज, बादल नगर कॉलोनी, बादल सिटी, रेलवे कॉलोनी, पूर्वी दीक्षिताना, पश्चिमी दीक्षिताना, सर्वोदय नगर, कुम्हारन टोला, अर्जुन नगर कॉलोनी, भारत भूषण कॉलोनी, वीरेंद्र नगर कॉलोनी, मुन्नूगंज, ऊंची भूड़ और नीची भूड़ जैसे कई बाजार हैं। तीर्थ बाजार मुख्य रूप से महिलाओं का शॉपिंग डोमेन है जिसमें चूड़ियाँ, श्रृंगार/सौंदर्य प्रसाधन की वस्तुएँ और पवित्र पुस्तकें आदि की दुकानें शामिल हैं।

गोला गोकर्णनाथ कैसे पहुंचे?

गोला गोकर्णनाथ मंदिर उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में स्थित है और देश के विभिन्न शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। आप यहां ट्रेन, बस या निजी वाहन से आसानी से पहुंच सकते हैं।


ट्रेन से कैसे पहुंचे? | By Train

गोला गोकर्णनाथ का अपना रेलवे स्टेशन है, जो उत्तर प्रदेश और भारत के अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

  • लखनऊ से गोला गोकर्णनाथ के लिए कई ट्रेनें उपलब्ध हैं। सबसे तेज़ ट्रेन 4 घंटे 30 मिनट में पहुंचती है।
  • दिल्ली से भी इस मंदिर तक ट्रेन सेवा उपलब्ध है। सबसे तेज़ ट्रेन से यात्रा करने में लगभग 10 घंटे 30 मिनट लगते हैं।

अद्यतन ट्रेन शेड्यूल देखने और टिकट बुक करने के लिए भारतीय रेलवे की आधिकारिक वेबसाइट पर जा सकते हैं।


बस से कैसे पहुंचे? | By Bus

  • लखनऊ से गोला गोकर्णनाथ के लिए कई बसें चलती हैं। यात्रा में लगभग 5 घंटे लगते हैं।
  • दिल्ली से बस से यात्रा करने में 12 घंटे का समय लगता है।
  • यह मंदिर उत्तर प्रदेश और पड़ोसी राज्यों के प्रमुख शहरों से बस सेवा द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

कार से कैसे पहुंचे? | By Car

अगर आप अपनी कार से यात्रा करना चाहते हैं, तो हाईवे के जरिए आसानी से गोला गोकर्णनाथ पहुंच सकते हैं।

  • लखनऊ से: नेशनल हाईवे 24 (NH-24) लें। कुल दूरी 170 किलोमीटर है, जिसे 4-5 घंटे में तय किया जा सकता है।
  • दिल्ली से: नेशनल हाईवे 19 (NH-19) लें और 400 किलोमीटर की यात्रा पूरी करें। सफर में लगभग 8-10 घंटे लगते हैं।

गोला गोकर्णनाथ पहुंचने के बाद, आप रिक्शा, ऑटो-रिक्शा या टैक्सी लेकर मंदिर तक आसानी से जा सकते हैं।


अंतिम पड़ाव पर सुविधाएं

गोला गोकर्णनाथ पहुंचकर, आपको ऑटो, रिक्शा और टैक्सी जैसी स्थानीय परिवहन सुविधाएं आसानी से मिल जाएंगी, जिससे मंदिर और अन्य दर्शनीय स्थलों तक पहुंचना आसान हो जाता है।

अगर आप भगवान शिव के दिव्य दर्शन करना चाहते हैं, तो अपनी यात्रा की योजना बनाएं और छोटी काशी (गोला गोकर्णनाथ धाम) की आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव करें!

गोला गोकर्णनाथ मंदिर में बड़ा बदलाव : कॉरिडोर का निर्माण

वर्ष 2022 में चुनावी सभा के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोला में छोटी काशी कॉरिडोर बनाने का ऐलान किया था। हालांकि इस बात को करीब डेढ़ वर्ष बीत चुका है। कॉरिडोर निर्माण को लेकर मंत्री, कमिश्नर, स्थानीय प्रशासन कई बार निरीक्षण, सर्वे और पैमाइश करा चुका है। लोकसभा चुनाव से पहले कॉरिडोर निर्माण को लेकर अंतिम सर्वे भी पूर्ण कर लिया गया था, लेकिन आचार संहिता के चलते निर्माण कार्य रुक गया।

आचार संहिता हटने के बाद निर्माण की प्रक्रिया के तहत नगरपालिका परिषद ने शिव मंदिर परिसर स्थित सत्संग भवन, दो मंजिला स्नानागार और शौचालय के भवन का ध्वस्तीकरण शुरू कर दिया था। इसके बाद सावन मेले के चलते निर्माण कार्य रोक दिया गया था। कॉरिडोर निर्माण की जद में आए अंगद धर्मशाला, बरेली धर्मशाला, दो सत्संग भवन, दो मंजिला शौचालय, स्नानागार और नजूल भूमि सहित 12 भवन आए थे। कैबिनेट से अभी नजूल की जमीनों को लेकर मंजूरी नहीं मिल पाई है।

वर्तमान में प्रस्तावित कॉरिडोर की स्थिति

  •  राजस्व अभिलेखों में गाटा संख्या 368, 364, 363, 369, 379 से 1.932 हेक्टेयर (लगभग 5 एकड़) भूमि पर बनेगा कॉरिडोर।
  • लाइट और साउंड से सजेगा गोकर्ण तीर्थ
  •  तीर्थ के जल को शुद्ध करने के लिए ऑक्सीडेशन प्लांट।
  • चहारदीवारी, फसाड लाइट, स्टोन पाथ-वे, प्रवेश द्वार, कैंटीन ब्लॉक, यात्री हाल, सीसीटीवी कैमरा से लैस कंट्रोल रूम आदि का निर्माण होगा।

अन्य परियोजनाएँ

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में स्थित गोला गोकर्णनाथ, जिसे ‘छोटी काशी’ के नाम से भी जाना जाता है, में एक भव्य कॉरिडोर का निर्माण प्रस्तावित है। इस परियोजना की लागत लगभग 96 करोड़ रुपये है और यह 19,524.670 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैली होगी। मुख्य द्वार अंगद धर्मशाला के पास स्थित होगा, जिससे भक्त सीधे मंदिर तक पहुंच सकेंगे। तीर्थ सरोवर के पास दूसरा द्वार और शिव मंदिर के प्रवेश द्वार के रूप में तीसरा द्वार बनाया जाएगा। वीआईपी प्रवेश के लिए नीलकंठ मैदान की ओर से पश्चिम दिशा में 8 मीटर चौड़े मार्ग का विस्तार किया जाएगा। पूरे परिसर को आकर्षक लाइटिंग और सजावट से सुसज्जित किया जाएगा, जिसमें तीर्थ कुंड की सीढ़ियों पर पत्थर लगाए जाएंगे। इस परियोजना के लिए अब तक 7 धर्मशालाएं, 7 मकान, 20 दुकानें और नगर पालिका की 7 दुकानों को हटाया गया है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस परियोजना का शिलान्यास किया है, जिससे क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। विधायक अमन गिरि ने कहा, सीएम योगी छोटी काशी आकर पौराणिक शिव मंदिर परिसर में कॉरिडोर के लिए भूमि पूजन कर आधारशिला रखेंगे। यह हम सभी के लिए गौरव का पल होगा। मुख्यमंत्री जी यहां आकर कॉरिडोर का शिलान्यास करेंगे और कुम्भी में बायोप्लांट का शिलान्यास करेंगे।

सीएम योगी आदित्यनाथ ने लखमीपुर खीरी में कई विकास योजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया

बलरामपुर चीनी मिल लिमिटेड की ओर से 2850 करोड़ रुपये की लागत से जैविक तरीके से पॉलिमर उत्पादन वाले संयंत्र की आधारशिला रखी। सीएम योगी ने गोला गोकर्णनाथ पहुंचकर शिव मंदिर कॉरिडोर का शिलान्यास भी किया।

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