दक्षिण भारत के रहस्यमयी मंदिर कहीं दूध नीला तो कहीं घी बना मक्खन
भारत एक ऐसा देश है, जहां हर कोने में आस्था और रहस्य की कहानियां छिपी हैं। यहां के कई प्राचीन मंदिर सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं हैं, बल्कि अपनी रहस्यमय घटनाओं के कारण दुनिया भर में मशहूर हैं। ये मंदिर विज्ञान और तर्क को चुनौती देते हैं और हजारों श्रद्धालुओं और जिज्ञासु यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
कुछ मंदिरों में ऐसी घटनाएं घटती हैं, जिन्हें आज तक कोई समझ नहीं पाया है। कहीं बिना किसी कारण के पानी बहता है, तो कहीं पत्थरों से संगीत की ध्वनि निकलती है। कुछ मंदिरों में चमत्कारी शक्तियों की कहानियां जुड़ी हैं, जो आज भी रहस्य बनी हुई हैं।
इन मंदिरों की अद्भुत वास्तुकला और रहस्यमय घटनाएं आस्था को और भी गहरा बना देती हैं। आइए, भारत के ऐसे ही रहस्यमय मंदिरों की दुनिया में प्रवेश करें, जहां चमत्कार और तर्क का अद्भुत मेल देखने को मिलता है।
भारत के सबसे प्रसिद्ध रहस्यमय मंदिर
भारत में ऐसे मंदिरों की संख्या अनगिनत है, जोकि धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यता के कारण सुप्रसिद्ध है। लेकिन क्या आपको पता है, दक्षिण भारत में ऐसे कई मंदिर है जो अपनी दिव्य और अविश्वसनीय शक्तियों के कारण दूर – दूर तक जाने जाते है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको दक्षिण भारत के मंदिर से जुड़ीं ऐसी जानकारी देने जा रहे है जिसे सुनकर आप इन मंदिरो के दर्शन को जरूर जाना चाहोगे। तो इनके नाम कुछ इस प्रकार है।
वेदगिरिश्वरर मंदिर - चील खाती है मीठी खिचड़ी
वेदगिरिश्वरर मंदिर, एक प्राचीन हिंदू तीर्थस्थल है जो तमिलनाडु के तिरुकलुकुंड्रम (या थिरुकाझुकुंद्रम) में स्थित है। इस मंदिर का नाम दो पवित्र चीलों के नाम पर रखा गया है, जो हर दिन दोपहर के समय पहाड़ी मंदिर पर आती हैं। यह स्थान पाक्षी तीर्थम के नाम से भी जाना जाता है यह एक ऐसा दक्षिण भारत का मंदिर है जिसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ये दो चीलें हर रोज़ मंदिर में चढ़ाए गए मीठे चावल को ग्रहण करने के लिए आती हैं और फिर अपनी चोंच से पानी पीने के बाद उड़ जाती हैं। मान्यता है कि ये चीलें प्राचीन काल से शिव की आराधना करने और उनके श्राप से मुक्ति पाने के उद्देश्य से प्रतिदिन यहां आती रही हैं। श्रद्धालुओं के अनुसार, ये चीलें सुबह गंगा में स्नान करती हैं, दोपहर को भोजन के लिए तिरुकाझुकुंद्रम पहुंचती हैं, शाम को रामेश्वरम के दर्शन करती हैं और रात को चिदंबरम लौट जाती हैं।
एकम्बरेश्वर शिव मंदिर
दक्षिण भारत के मंदिर में एकम्बरेश्वर शिव मंदिर की प्रसिद्धि काफी दूर – दूर तक फैली हुई है, यह मंदिर तमिलनाडु के कांचीपुरम नामक स्थान पर स्थित है। इस मंदिर के आंगन में एक प्राचीन आम का वृक्ष है, जिसे 3500 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है। इस अद्वितीय वृक्ष की खासियत यह है कि यह एक ही पेड़ पर चार प्रकार के आमों की उपज देता है, जो चार वेदों का प्रतीक माने जाते हैं। मंदिर के मुख्य देवता को “एकंबरेश्वर” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “आम के वृक्ष के स्वामी” (एक-अमर-नाथ)। यह मंदिर भारतीय दर्शन के पांच प्रमुख तत्वों में से पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है, जो इसे और भी विशेष और महत्वपूर्ण बनाता है।
गवी गंगाधरेश्वर मंदिर - घी से बन जाता है मक्खन
गवी गंगाधरेश्वर मंदिर, जिसे गविपुरम गुफा मंदिर भी कहा जाता है, यह दक्षिण भारत का मंदिर अपनी प्राचीनता और पवित्र गुफा के लिए विख्यात है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर हुलिमावु, बन्नेरघट्टा रोड, बैंगलोर, कर्नाटक में स्थित है और अपनी रहस्यमयी घटनाओं के कारण प्रसिद्ध है।
इस मंदिर में जब भक्त घी चढ़ाते हैं और पुजारी उसे शिवलिंग पर लगाकर रगड़ते हैं, तो वह घी चमत्कारिक रूप से मक्खन में परिवर्तित हो जाता है। भक्तों का कहना है कि उन्होंने अपनी आंखों के सामने इस प्रक्रिया को होते हुए देखा है, जब घी शिवलिंग पर अर्पित किए जाने के बाद मक्खन में बदल जाता है। यह घटना मंदिर की महिमा को और भी बढ़ा देती है, जिससे श्रद्धालु यहां खींचे चले आते हैं।
तिरुनागेश्वरम मंदिर - दूध का रंग हो जाता है नीला
दक्षिण भारत का मंदिर जोकि प्रसिद्ध है यहाँ चढ़ायें गए दूध के रंग बदलने को लेकर। यह मंदिर राहु, जिन्हें सांपों के राजा के रूप में जाना जाता है। तिरुनागेश्वरम मंदिर में अपनी पत्नियों नागा वल्ली और नागा कन्नी के साथ प्रतिष्ठित हैं। इस मंदिर का नाम “थिरुनागेश्वरम” इसलिए रखा गया, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान राहु ने यहां भगवान शिव की आराधना की थी। यह मंदिर तमिलनाडु के कुम्भकोणम शहर में स्थित है।
राहु पूजा के लिए रविवार को अत्यंत शुभ माना जाता है, और भक्त इस दिन राहु का दूध से अभिषेक करते हैं। इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि अभिषेक के समय जब राहु की मूर्ति पर दूध डाला जाता है, तो वह सफेद से नीले रंग में बदल जाता है और फिर जब यह दूध मूर्ति से बाहर निकलता है, तो इसका रंग वापस सफेद हो जाता है। इस चमत्कारिक घटना के कारण यह मंदिर श्रद्धालुओं के बीच विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यह विशिष्ट दक्षिण भारत का मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए भी जाना जाता है।
पेरुमल मंदिर - इस मंदिर में नहीं चढ़ता नमक
पेरुमल मंदिर की एक खास परंपरा है कि इसके परिसर में नमक ले जाना सख्त मना है, और इसे किसी भी भोजन की तैयारी में उपयोग नहीं किया जाता। यह मान्यता है कि भगवान ने इस स्थान पर वादा किया था कि वे बिना नमक के भोजन ग्रहण करेंगे। इस कारण, मंदिर में तैयार किए जाने वाले सभी प्रसाद बिना नमक के बनाए जाते हैं। यह मंदिर तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर में स्थित है।
दक्षिण भारत का मंदिर पेरुमल भगवान तिरुपति बालाजी के “अन्नान” या बड़े भाई के रूप में प्रतिष्ठित है। ऐसा माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति तिरुपति के दर्शन करने में असमर्थ हो, तो इस मंदिर में दर्शन करना तिरुपति के दर्शन के समान फलदायी होता है। इसके साथ ही, यह मंदिर विष्णु के 108 दिव्य देशमों में से एक है, जो विशेष धार्मिक महत्व रखता है और भक्तों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है।
हर दिन दो चीलें मंदिर में चढ़ाए गए मीठे चावल को ग्रहण करने आती हैं।
यह एक ही पेड़ पर चार प्रकार के आमों की उपज देता है, जो चार वेदों का प्रतीक हैं।
अभिषेक के दौरान राहु की मूर्ति पर डाला गया दूध सफेद से नीला हो जाता है और फिर वापस सफेद हो जाता है।
निष्कर्ष
दक्षिण भारत के मंदिर अपनी प्राचीनता, चमत्कारिक घटनाओं और धार्मिक मान्यताओं के कारण प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों में सदियों से चली आ रही परंपराओं और अनोखी घटनाओं ने श्रद्धालुओं के विश्वास और आस्था को और भी गहरा कर दिया है। चाहे वह वेदगिरिश्वरर मंदिर में चीलों का मीठा खिचड़ी ग्रहण करना हो, एकंबरेश्वर मंदिर में 3500 साल पुराना चार किस्मों का आम का पेड़ हो, या गवी गंगाधरेश्वर मंदिर में घी का मक्खन में बदलना हो, प्रत्येक मंदिर की अपनी एक अनोखी कहानी है।