चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा का है विधान
देशभर में नवरात्रि का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है| इस दौरान माँ के नौ रूपों की पूजा विधि-विधान से की जाता है| नवरात्रि के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा की जाती है| माना जाता है कि देवी कूष्मांडा की पूजा से सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते है| देवी कूष्मांडा का निवास स्थान सूर्यमंडल के बीच में माना जाता है। देवी का तेज ही इस संसार को तेज बल और प्रकाश प्रदान करता है।नवरात्रि के चौथे दिन इनका ध्यान करते हुए पूजन करते हैं उनके लिए इस संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है। माता अपने भक्त की हर चाहत को पूरी करती हैं और भोग एवं मोक्ष प्रदान करती हैं।
देवी के चौथे रूप का नाम कूष्मांडा क्यों ?
कूष्मांडा का शाब्दिक अर्थ है कुम्हड़ा(कद्दू)। ऐसी मान्यता है की देवी कूष्मांडा की पूजा के दौरान कुम्हड़े की बलि देना शुभ माना जाता है| जब संसार में असुरों का अत्याचार बढ़ गया था तब माँ दुर्गा ने देवी कूष्मांडा के अवतार में प्रकट हुई थी और संसार को राक्षसों क अत्याचार से मुक्त किया था।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इन्ही ने पुरे ब्रह्माण्ड की रचना की थी| अपनी मंद मुस्कान द्वारा अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण देवी का नाम कूष्मांडा पड़ा।
क्या देवी कूष्मांडा ही आदिशक्ति हैं?
माना जाता है की जब ये सृष्टि नहीं थी, चारो तरफ़ केवल अंधकार ही अंधकार था तब देवी ने अपने हास्य से ब्रह्माण्ड का निर्माण किया था, इसीलिए माँ आदिशक्ति या आदिस्वरूपा रूप में विख्यात हुई। देवी कूष्मांडा को ही संसार का रचनाकार माना गया है। देवी का निवास ब्रह्माण्ड के बीच में है जहाँ से देवी पुरे जगत को प्रकाशित किये हुए हैं।
माँ कूष्मांडा का स्वरुप
माँ अपने चेहरे पर हलकी मुस्कान लिए आठ भुजाएँ धारण की हैं। इसीलिए अष्टभुजा कहलाती है। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल,धनुष,बाण,कमल-पुष्प,अमृतपूर्ण कलश,चक्र तथा गदा हैं और माँ के आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। देवी के हाथ में जो अमृत कलश है उससे वह अपने भक्तों को दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य का वरदान देती हैं। देवी कूष्मांडा का वास सूर्यमण्डल के भीतर लोक में है| सूर्यलोक में रहने की शक्ति केवल माँ कूष्मांडा में ही है। माँ के शरीर की कांति भी सूर्य के समान है। जिससे दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रहीं हैं। माँ की सवारी सिंह है जो धर्म का प्रतीक है। माँ कूष्मांडा का संबंध कुम्हड़ा से है जिससे माँ को पेठे का भोग सबसे प्रिय है। माँ के इस स्वरुप का की आराधना करने से माँ की कृपा से आयु,यश, बल,और स्वास्थ्य समृद्धि प्राप्त होती है।
देवी कूष्मांडा की पूजा विधि
- नवरात्रि में रोज की प्रातः स्नान करके पहले कलश की पूजा करके माता कूष्मांडा का ध्यान करें|
- हो सके तो माँ कूष्मांडा की पूजा के लिए हरे या संतरी रंग के कपड़े पहने|
- माँ को जल, पुष्प अर्पित करें|
- देवी को पूरे मन से फूल, धूप, गंध और शुद्ध घी के बने मालपुए और माँ का प्रिय कुम्हड़े का बना पेठे का भोग लगाते है|
- पान के पत्ते पर थोड़ा सा केसर लेकर ऊँ बृं बृहस्पते नम: मंत्र का जाप करते हुए देवी को अर्पित करें।
- अब ॐ कूष्माण्डायै नम: मंत्र की एक माला जाप करें और दुर्गा सप्तशती या सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।
- मां कूष्मांडा को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। इस दिन पूजा में देवी को पीले वस्त्र, पीली चूड़ियां और पीली मिठाई अर्पित करें।
- देवी कुष्मांडा को पीला कमल प्रिय है। मान्यता है कि इसे देवी को अर्पित करने से साधक को अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।
- देवी कूष्मांडा की ध्यान करें और माँ की आरती उतारें|
मां कूष्मांडा का महत्व
- ब्रह्मांड की रचना: पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां कूष्मांडा ने अपनी मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी, इसलिए उन्हें ब्रह्मांड की रक्षक माना जाता है।
- रोगों का नाश:मां कूष्मांडा रोगों का नाश करने वाली और आयु में वृद्धि करने वाली मानी जाती हैं।
- अनाहत चक्र का जागृत:मां कूष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्र जागृत होता है।
- सुख-समृद्धि:मां कूष्मांडा की आराधना से जीवन में सभी प्रकार की समृद्धि और सुख-शांति का प्रवेश होता है।
मां कूष्मांडा का पूजा मंत्र
माँ कूष्मांडा का मंत्र –
॥ ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः ॥
माँ कूष्मांडा की प्रार्थना
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
माँ कूष्मांडा की स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ॥
माँ कूष्मांडा का ध्यान
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम् ॥
भास्वर भानु निभाम् अनाहत स्थिताम् चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पद्म, सुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम् ॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल, मण्डिताम् ॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कोमलाङ्गी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम् ॥
माँ कूष्मांडा का स्त्रोत
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहि दुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम् ॥
माँ कूष्मांडा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिङ्गला ज्वालामुखी निराली।
शाकम्बरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे।
सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥