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गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एकदन्त, दयावन्त, चार भुजा धारी।
माथे पर तिलक सोहे, मूषक की सवारी॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डूवन का भोग लगे, संत करें सेवा॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
दीनन की लाज रखो, शम्भु सुतवारी।
कामना को पूरा करो, जाऊं बलिहारी॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
श्री रामचंद्र जी की आरती
श्री रामचंद्र कृपालु भज मन, हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुख, कर कंज पद कंजारुणम्॥
कंदर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट पीत मानहुं तडित रुचि, शुचि नौमि जनक सुतावरम्॥
भजु दीनबंधु दिनेश दानव, दैत्य वंश निकन्दनम्।
रघुनन्द आनन्दकंद कोशल, चन्द्र दशरथ नन्दनम्॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु, उदार अंग विभूषणम्।
आजानुभुज शर चाप धर, संग्राम जित खरदूषणम्॥
इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम हृदय कंज निवास कुरु, कामादि खल दल गंजनम्॥
मनुजा भव दुःख ताप हरन, कामितारथ दानम्।
श्रीरघुनाथ आरती जो कोई नित गावहि भक्ति मनोहरम्॥
जय जय जय रघुवीर समर्थ, जय सिया राम।
जय जय जय हनुमान उग्र, जय जय कपि धुंधुमार॥
शिव जी की आरती (ॐ जय शिव ओंकारा)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्धांगी धारा॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
अक्षमाला वनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये यह तीनों एका॥
त्वं ही पार्वती प्रिय, शंकराचार्य ज्ञानी।
त्रिगुणस्वामी की आरती जो कोई नर गावे॥
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे।
ॐ जय शिव ओंकारा…॥
दुर्गा जी की आरती
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोऊ नैना, चंद्रबदन नीको॥
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गलमाला, कंठन पर साजै॥
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत, तिनके दुःखहारी॥
कानन कुंडल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर, राजत सम ज्योति॥
चंड-मुंड संहारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥
ब्रह्माणी, रुद्राणी, तुम कमला रानी।
आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥
चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करै भैरू।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजै डमरू॥
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भवानी।
भक्तन की दुःख हरता, सुख संपत्ति कानी॥
भुजा चार अति शोभित, खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर-नारी॥
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥
श्री अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥
लक्ष्मी जी की आरती
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
ओम जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ओम जय लक्ष्मी माता॥
हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर काँपे, रोग दोष जाके निकट न झाँके।
अंजनि पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए, लंका जारी सिया सुधि लाए।
लंका सो कोट समुद्र-सी खाई, जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारी असुर संहारे, सियारामजी के काज सवारे।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे, आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पाताल तोरि जम-कारे, अहिरावण की भुजा उखारे।
बाएं भुजा असुर दल मारे, दाहिने भुजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारें, जय जय जय हनुमान उचारें।
कंचन थार कपूर लौ छाई, आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमान जी की आरती गावे, बसि बैकुण्ठ परम पद पावे।
लंक विध्वंस किये रघुराई, तुलसीदास प्रभु कीर्ति गाई॥
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
सरस्वती जी की आरती
जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता।
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥
बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला।
शीश मुकुट मणि सोहे, गले मोतियन माला॥
देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया॥
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो॥
धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥
माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे।
हितकारी सुखकारी, ज्ञान भक्ति पावे॥
जय सरस्वती माता…॥
सूर्य देव की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे…॥
एक अन्य प्रचलित सूर्य आरती:
आरती कीजै सूरज नारायण की, प्रकट किरण निधान की।
रवि, शशि, कराल, कला, भानु, तपन, दिनकर, दिवाकर, भास्कर नाम है।
अरुण, उदय उषा माली, तम नाशक, त्रिगुण स्वामी, एक है।
सकल ब्रह्मण्ड के प्राण हैं, आदि ज्योति अमित ज्ञान हैं।
जय हो सूरज देव महाराज की॥
विष्णु जी की आरती
आरती श्री विष्णु जी की, कीजै। हरि ओम जय विष्णु भगवान॥
शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी, श्रीपति नारायण।
श्रीधर, माधव, मुकुन्द, केशव, दामोदर हरी॥
पीताम्बर परिधान सुन्दर, वनमाला विराजै।
चरणों में खड़ाऊँ बज रही, मुकुट मणि छवि छाजै॥
मस्तक पर तिलक सुशोभित, कुण्डल डोल रहा।
चार भुजाएं दिव्य शोभित, कटि में किंकिनी कहा॥
शेषनाग पर शयन करत, लक्ष्मी चरण दबावै।
ब्रह्मा शिवादिक सेवक जन, नित निरखत गुन गावै॥
नारद, सनक, सनन्दन, शेष, गरुण आदि सेवक।
ऋषि-मुनि जपत वेद पुराण, ब्रह्म रस अभेदक॥
जो यह आरती विष्णु जी की, भक्ति सहित गावै।
ताहि की मनोकामना, श्री हरि पूर्ण करावै॥
आरती श्री विष्णु जी की, कीजै। हरि ओम जय विष्णु भगवान॥