मंदिर की ज्योति के आगे झुका अकबर का शीश
क्या आपने सुना है, जब एक सम्राट का अभिमान मंदिर की ज्योति के आगे झुक गया?
यह कहानी है अकबर की—जिसे इतिहास एक महान मुगल शासक के रूप में जानता है। लेकिन यह घटना उसके शासन या युद्ध से नहीं जुड़ी; यह जुड़ी है उसकी विनम्रता और आस्था की परीक्षा से। कहते हैं कि अकबर, जो अपनी बुद्धिमत्ता और शक्ति के लिए प्रसिद्ध था, एक दिन किसी मंदिर में पहुँचा। वहां की अखंड ज्योति और उसकी पवित्र आभा ने उसे ऐसा झकझोरा कि उसने अपने शाही अभिमान को भुलाकर शीश झुका दिया। यह क्षण न केवल अकबर के व्यक्तित्व की गहराई को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि आस्था के सामने राजा और रंक एक समान हैं।
आइए, इस अद्भुत घटना के पीछे छिपे रहस्य और संदेश को करीब से जानने की कोशिश करें।
वैदिक शास्त्रों में माँ दुर्गा के 9 अलग अलग स्वरूपों का वर्णन किया गया है और लगभग भारत के समस्त देवी मंदिरों में इन्हीं स्वरूपों की मूर्ति रूप में पूजा होती है। लेकिन हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित ज्वाला देवी मंदिर एक ऐसा अनोखा मंदिर है।
जहाँ माता रानी की मूर्ति नहीं बल्कि ज्योति स्वरूप में पूजा की जाती है। इस मंदिर के भीतर एक पवित्र पत्थर से 9 अग्नि की ज्वालायें स्वतः प्रज्वल्लित होती रहती है जो माता के 9 स्वरूपों का वर्णन करती है।
मुग़ल कालीन सम्राट अकबर ने इस मंदिर की ज्योति को बुझाने के कई प्रयास किये किन्तु वह असफल रहा। और अंत में उसने मंदिर की महिमा को स्वीकार कर माता के समक्ष नतमस्तक हो गया। तो आइये इस लेख के माध्यम से ज्वाला देवी मंदिर की दिव्यता को और अधिक विस्तार से जानने का प्रयास करते है।
ज्वाला देवी मंदिर के बारे
स्थापना
ज्वाला देवी मंदिर का इतिहास अति प्राचीन है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर 8वीं शताब्दी के प्रसिद्ध आदि शंकराचार्य गुरु बालकनाथ से सम्बंधित है। मंदिर के प्रचार प्रसार में उनका अहम योगदान रहा है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवी सती अपने पिता द्वारा किये गए अपमान को सहन न कर सकी तो उन्होंने अपने शरीर की आहुति यज्ञ में दे दी। इस कृत से भगवान शिव को अत्यंत पीड़ा हुई और उन्होंने माता सती के पार्थिव शरीर को हाथों में उठाकर तांडव नृत्य शुरू कर दिया। तांडव के प्रकोप से सृष्टि का अंत निश्चय था। जिसकी रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के पार्थिव शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया।
पार्थिव शरीर के भाग धरती के जिन-जिन स्थान पर गिरे उन्हें ” शक्तिपीठ ” कहा गया। शास्त्रों के अनुसार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित पहाड़ियों पर माता सती की जीभ गिरी। जिस कारण यह स्थान ज्वाला देवी शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
ज्वाला की विशेषता
ज्वाला देवी मंदिर की विशेषता यहाँ प्रज्वल्लित होने वाली 9 प्रमुख ज्वालाओं से है। इन ज्वालाओं को मातादुर्गा के 9 अलग अलग स्वरूपों के रूप में पूजा जाता है। ये ज्वालायें मंदिर में स्थित शिला के छोटे-छोटे स्रोतों से निकलती है। जो प्राकृतिक रूप से निरंतर जलती रहती है।
चमत्कारी कुंड का रहस्य
ज्वाला देवी मंदिर से कुछ ही दूरी पर “ गोरख डिब्बी “ नामक का एक रहस्यमयी कुंड स्थित है। इस कुंड को दूर से देखने पर यह गर्म पानी से भरा हुआ प्रतीत नजर आता है। जबकि वास्तव में इस कुंड का पानी बेहद ठंडा है।
अकबर का ज्वाला देवी के समक्ष नतमस्तक होना
ज्वाला देवी मंदिर की प्रसिद्धि की चर्चा मुग़ल काल में भी काफी रही है। इतिहासकारों के अनुसार जब मुग़ल बादशाह अकबर को इस मंदिर के बारे में जानकारी मिली तब उन्होंने स्वयं यहाँ आकर ज्वाला देवी की ज्योति बुझाने का प्रयास किया। लेकिन देवी की ज्योति जस की तस जलती रही।
इस अद्भुत चमत्कार को देखकर सम्राट अकबर को ज्वाला देवी की शक्तियों पर विश्वास हो और उसने मंदिर में सोने का छत्र भेंट किया। किन्तु, मां ज्वाला जी ने उसकी भेंट स्वीकार नहीं की। जिसके वजह से उस सोने के छत्र को कई बार टांगने का प्रयास किया गया किन्तु सफलता नहीं मिल सकी।
आसपास के दर्शनीय स्थल
ज्वाला देवी मंदिर के आस-पास कई अन्य दर्शनीय स्थल भी मौजूद है। जो प्राकृतिक सौंदर्य और अपनी ऐतिहासिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है।
1 - माता तारा देवी मंदिर
माता तारा देवी का मंदिर 250 वर्षों पुराना बताया गया है। जिसकी स्थापना बंगाल के सेन साम्राज्य के राजा द्वारा की गयी थी। ज्वाला देवी मंदिर के पिछले द्वार से 100 सीढ़ियों को चढ़ने के बाद आप इस पवित्र मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
2 - चामुंडा देवी मंदिर
यह मंदिर कांगड़ा जिले में स्थित है और देवी चामुंडा को समर्पित है। इस मंदिर तक जाने के लिए आप स्थानीय टैक्सी, ऑटो का सहारा ले सकते है।
3 - कांगड़ा किला
यह किला ज्वाला देवी मंदिर से लगभग 20 किमी दूर स्थित है। स्थानीय टैक्सी की मदद से आप इस किले तक आसानी से पहुंच सकते है।
4 - पालमपुर
ज्वाला देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश से करीब 35 किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान अपनी चाय बागानों और हरे-भरे वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। इस स्थान तक आने के लिए आप कांगड़ा से टैक्सी या बसों का सहारा ले सकते है।
मंदिर की परंपराएँ
कई वर्षों से इस मंदिर में पशु बलि देने की परंपरा प्रचलित थी। लेकिन 18वीं शताब्दी में राजा रणजीत सिंह ने इसे समाप्त कर दिया। जिसके बाद से यहां केवल फूल, नारियल, और मिठाई ही अर्पित किए जाते हैं।
मंदिर की समय सारणी
| ग्रीष्म ऋतु का समय | सर्दियों का समय |
मंदिर खुलने का समय | सुबह 5 बजे | सुबह 6 बजे |
मंगल आरती | सुबह 5 बजे से 6 बजे तक | सुबह 5 बजे से 6 बजे तक |
पंज उपचार पूजन | मंगल आरती के बाद | मंगल आरती के बाद |
भोग की आरती | सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक | सुबह 11 बजे से दोपहर 12 बजे तक |
सायंकालीन आरती | सायं 7 बजे से 8 बजे तक | सायं 6 बजे से 7 बजे तक |
शइयां की आरती | रात्रि 9 बजे से 10 बजे तक | रात्रि 8 बजे से 9 बजे तक |
मंदिर बंद होने का समय | 10 बजे | 9 बजे |
मंदिर तक कैसे पहुंचे ?
हवाई मार्ग से
- हिमाचल प्रदेश के गग्गल में स्थित हवाई अड्डे से यह मंदिर 50 किलोमीटर दूरी पर है।
- यह मंदिर चंडीगढ़ हवाई अड्डा से लगभग 200 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
- शिमला हवाई अड्डे से मंदिर की दूरी लगभग 160 किलोमीटर है।
- हिमाचल प्रदेश के कुल्लू हवाई अड्डे आपको 250 किलोमीटर की यात्रा तय करके मंदिर तक जाना होगा।
रेल द्वारा
इस मंदिर तक जाने के लिए सबसे पहले आपको पठानकोट तक सफर तय करना होगा। जहाँ से आप नैरोगेज रेल की यात्रा करके रानीताल स्टेशन तक आ सकते है। इस स्टेशन से मंदिर 20 किलोमीटर की दूरी पर है।
दिल्ली से पठानकोट जाने वाली रेल
पठानकोट एक्सप्रेस( 22429 ) , जम्मूतवी एक्सप्रेस ( 18309 ) , धौलाधार एक्सप्रेस ( 14035 )
कानपुर से पठानकोट जाने वाली रेल
जम्मूतवी एक्सप्रेस ( 18309 )
जयपुर से पठानकोट जाने वाली रेल
श्री माता वैष्णों देवी कटरा एक्सप्रेस ( 19415 )
सड़क मार्ग से
यह मंदिर सड़क मार्ग द्वारा कई बड़े शहरों से सीधा जुड़ा हुआ है। शहरों से इस मंदिर की दूरी कुछ इस प्रकार है।
- दिल्ली – 475 किमी.
- चंडीगढ़ – 200 किमी.
- मनाली – 200 किमी.
- पठानकोट – 120 किमी.
- शिमला – 205 किमी.
- जम्मू – 300 किमी.
इन शहरों में भी है ज्वाला देवी के प्राचीन मंदिर
कानपुर
कानपुर के घाटमपुर क्षेत्र में स्थित मां ज्वाला देवी का प्राचीन मंदिर करीब 500 वर्ष पुराना बताया जाता है। इस मंदिर के गर्भ गृह में एक कुंड स्थित है जिसमें यज्ञ, हवन और आहुतियां की जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में उपस्थित राख में अग्नि सदैव बनी रहती है। जिस कारण स्थानीय लोगों में इस मंदिर को लेकर अपार श्रद्धा है।
इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आप कानपुर परिवहन की बसों से रमईपुर – साढ़ होते हुए भीतरगांव के बेहटा (गंभीरपुर) तक आ सकते हैं। और यहीं से मां ज्वाला देवी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।
लखनऊ
लखनऊ के आशियाना इलाके में ज्वाला देवी का एक भव्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर में 20 वर्षों से निरंतर ज्वाला जी को प्रज्वल्लित कर रखा गया है। यह ज्वाला वर्ष 2004 में ज्वाला देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश से लाई थी।
स्थानीय लोगों में इस मंदिर को लेकर अपार श्रद्धा है। शुक्रवार के दिन यहाँ पीले रंग का सिंदूर चढाने से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
इस मंदिर तक जाने के लिए आप लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन से मंदिर तक ऑटो कर सकते है।
माँ ज्वाला देवी के मंत्र
- ॐ ज्वालायै नमः।
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ज्वालायै नमः।
- ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
- दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
ज्वाला देवी जी की आरती
ॐ जय ज्वाला माई, मैय्या जय ज्वाला माई । कष्ट हरण तेरा अर्चन, सुमिरन सुखदयी ।।
अटल अखण्ड तेरी ज्योती, युग युग से ही जगे । ऋषि मुनि सुर नर सबको, बड़ी प्यारी मां लागे ।।
पार्वती रूप शिव शक्ति, तुम ही मां अम्बे । पूजे तुम्हे त्रिभुवन के, देवता जगदम्बे ।।
लाखों सूरज फीके, ज्योति तेरी आगे। तेरे चिन्तन से मां, भव का भय भागे ।।
चरण शरण में चल के, जो तेरे द्वारे आये। खाली कभी ना जाये, वांछित फल पावे ।।
दुर्गति नाशक चंडिका,तुम दानव दलनी। दीनहीन की रक्षक, तुम ही सुख करनी ।।
आठों सिद्धियाँ तेरे, द्वार भरे पानी । दान मां तुझसे लेते, बड़े बड़े महादानी ।।
चरण कमल तेरे धोकर, ध्यानूँ ने रस का पिया। तेरी धुन में खोकर, शीश तेरी भेंट किया ।।
भक्तों के काज असंभव, संभव तु करती। सुख रत्नों से सबकी, झोलियाँ तू भरती ।।
धूप दीप पुष्पों से, होए तेरा अभिषेक । तेरे दर रंकों को, राजा बनते हुए देखा।।
अष्ठ भुजी सिंहवाहिनी, तु मां रूद्राणी । धन वैभव यश देना, हमको महारानी।।
ज्योति बुझाने आये, राजे अभिमानी। हार गये वो तुमसे, मूढ़ मति अज्ञानी ।।
माई ज्वाला तेरी आरती, श्रद्धा से जो गाये । वो निर्दोष उपासक भव से तर जाये ।।
ॐ जय ज्वाला माई, मैय्या जय ज्वाला माई । कष्ट हरण तेरा अर्चन, सुमिरन सुखदायी ।।
FAQ
इस मंदिर में जलने वाली अग्नि कई छोटे-छोटे स्रोतों से निकलती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाली गैसों के कारण जलती रहती है और सदियों से बिना बुझे लगातार प्रज्वलित है।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने देवी सती के शरीर को सुदर्शन चक्र से काटा, तो उनकी जीभ यहां गिरी थी। इसलिए इस स्थान का नाम ज्वाला देवी पड़ा और इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
मंदिर में नवरात्रि का पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दौरान हर दिन विशेष पूजा, आरती, और भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जिसमें भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
निष्कर्ष
इस लेख में ज्वाला देवी मंदिर से जुडीं समस्त जानकारियों को आप तक पहुंचाने का प्रयास किया गया। ताकि भविष्य में जब भी आप इस मंदिर में घूमने जाये तो यहाँ तक पहुंचने में आपको किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो सके। उम्मीद करते है यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा। धन्यवाद !