अनोखा मंदिर जहाँ चढ़ायें जाते है जूते-चप्पल और टोपियाँ
भोपाल के कोलार क्षेत्र में स्थित जीजाबाई माता मंदिर एक अनोखी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर माता सिद्धिदात्री को समर्पित है। स्थानीय लोग इस मंदिर को ” पहाड़ी वाली माता मंदिर ” के नाम से पुकारते हैं। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ भक्तों द्वारा देवी मां को जूते – चप्पल भेंट किये जाते हैं। इस परंपरा को लेकर स्थानीय लोगों में अवधारणा है कि माता रानी को भेंट में जूते – चप्पल और टोपियाँ चढाने से मन की मुरादें जल्द पूरी होती है।
मंदिर की स्थापना
जीजाबाई माता मंदिर की स्थापना सन 2000 में मंदिर के प्रमुख पुजारी ओम प्रकाश द्वारा की गयी थी। मंदिर के स्थापना समारोह में उन्होंने भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह का आयोजन किया था। और माता पार्वती को अपनी बेटी मानकर उनका कन्यादान अपने हाथों से किया। और इसी दिन से इस मंदिर में माता सिद्धिदात्री को बेटी के स्वरूप में पूजा जाने लगा।
जूते-चप्पल भेंट करने की परंपरा
मंदिर में माता को जूते और चप्पल भेंट करने की परंपरा भक्तों के सेवा भाव को दर्शाता है। जिस प्रकार एक पिता अपनी बेटी की समस्त अवश्यक्ताओं की पूर्ति करता है। वही भाव इस मंदिर में देवी की प्रतिमा को लेकर भी है। लोग मंदिर में स्थित प्रतिमा को अपनी बेटी के स्वरूप में उन्हें जूते चप्पल वस्त्र व अन्य आवश्यक्ताओं सम्बन्धी वस्तुओं को भेंट करते है। भक्त माता को नई-नई चप्पल और सैंडल अर्पित करते हैं ताकि देवी मां के पैरों को आराम मिल सके।
मंदिर के पुजारी ओम प्रकाश बताते हैं कि यह अनोखी परंपरा भक्तों के विश्वास और देवी के प्रति असीम प्रेम को दर्शाता है। यहाँ केवल स्थानीय भक्त ही नहीं बल्कि विदेशों से आने वाले भी भक्त नई चप्पलें और सैंडल भेंट करते है।
मंदिर की खासियत
इस मंदिर में माता सिद्धिदात्री की प्रतिमा को बाल स्वरूप दर्शाया गया है। जिससे भक्तों के मन में एक बेटी की छवि उत्पन्न होती है। मंदिर में चप्पलें, चश्मा, घड़ी, छाता, और अन्य रोजमर्रा की उपयोगी वस्तुएं भी भेंट की जाती हैं।
इस परंपरा का एक विशेष पहलू यह भी है कि जब पुजारी को लगता है कि देवी प्रसन्न नहीं हैं, तो दिन में दो से तीन बार उनके वस्त्र बदल दिए जाते हैं। यह सेवा भाव इतना महत्वपूर्ण है कि पिछले 25 वर्षों में, माता के 15 लाख से अधिक वस्त्र और अन्य सामान बदले जा चुके हैं। माता को हर रोज नई पोशाक पहनाई जाती है।
धार्मिक महत्व
जीजाबाई माता मंदिर की यह परंपरा समाज में बेटियों के महत्व को दर्शाती है। इस मंदिर का संदेश यह है कि बेटियों को देवी के समान मानना और उनकी सेवा करना एक पुण्य कार्य है। भक्त यहां न केवल माता से आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं। बल्कि इस अनोखी परंपरा का हिस्सा बनने के लिए भी आते हैं।
नवरात्रि के दौरान मंदिर में भक्तों की विशेष भीड़ होती है। इस दौरान यहां माता के विशेष अनुष्ठान और पूजा-पाठ किए जाते हैं। भक्तों की भक्ति और श्रद्धा देखते ही बनती है। यहां की सेवा परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को बढ़ावा देती है। बल्कि समाज में एक सकारात्मक संदेश भी फैलाती है कि बेटियों की देखभाल करना और उन्हें सम्मान देना आवश्यक है।
मंदिर की सेवा और व्यवस्थापन
पुजारी ओम प्रकाश और मंदिर के अन्य सेवक माता की सेवा में कोई कमी नहीं रखते। मंदिर में माता की हर जरूरत का ख्याल रखा जाता है। मंदिर में हर दिन माता की साज-सज्जा की जाती है और उन्हें तरह-तरह के आभूषण और वस्त्र पहनाए जाते हैं। माता के वस्त्र और अन्य सामग्री भक्तों द्वारा भेंट की जाती हैं, जो उनके प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक है।
भक्तों का मानना है कि माता को चप्पलें और अन्य वस्तुएं भेंट करने से उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और वे देवी के आशीर्वाद से सुख-समृद्धि प्राप्त करते हैं। इस अनोखी परंपरा में भक्तों का अटूट विश्वास है। और यही कारण है कि यह मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
अनोखी धार्मिक आस्था का प्रतीक
मंदिर के इस विशेष चलन का एक और पहलू यह है कि यह परंपरा उस विश्वास को भी दर्शाती है जिसमें देवी की देखभाल बेटियों के रूप में की जाती है। इस मंदिर में आने वाले हर भक्त के मन में एक ही भावना होती है कि वह अपनी बेटी के लिए जो करता है, वही माता के लिए भी करना चाहिए।
इस प्रकार, भोपाल के जीजाबाई माता मंदिर का यह अनोखा चलन इसे न केवल एक धार्मिक स्थल बनाता है। बल्कि यह समाज में बेटियों के महत्व और उनकी सेवा के प्रतीक के रूप में भी खड़ा है। इस मंदिर में आकर भक्त एक अलग तरह की आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव करते हैं और देवी मां से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।