नरक चौदस बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व

नरक चौदस बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व

क्या आप जानते हैं कि नरक चौदस सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है? नरक चौदस, जिसे रूप चौदस या नरक चतुर्दशी भी कहते हैं, दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाती है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत, आत्मशुद्धि और सौंदर्य साधना का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन सुबह उबटन और तेल मालिश के बाद स्नान करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन दैत्य नरकासुर का वध कर 16,000 कन्याओं को मुक्त कराया था। तभी से इस दिन को बुराई के अंत और नई शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। 2025 में नरक चौदस एक शुभ संयोग लेकर आएगी, जब लोग शुद्ध मन और तन से इस पर्व को मनाएंगे। इस दिन विशेष पूजा, दान और स्नान करने से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। आइए जानते हैं इस पावन पर्व की पूजा विधि और खास महत्व।

नरकासुर की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, नरकासुर एक शक्तिशाली राक्षस और भौमासुर के नाम से भी जाना जाता था। वह भगवान विष्णु के वरदान से अत्यंत बलशाली हो गया था और अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगा था। नरकासुर ने पृथ्वी पर आतंक मचाना शुरू कर दिया था और स्वर्गलोक तक में देवताओं को भी नहीं बख्शा। उसने 16,100 कन्याओं को बंदी बना लिया था, जिन्हें वह अपने महल में कैद कर रखा था। नरकासुर का अत्याचार इस हद तक बढ़ गया था कि उसने देवी-देवताओं के आभूषण और माता अदिति के कुंडल तक छीन लिए थे।

नरकासुर का वध

देवताओं ने नरकासुर के अत्याचारों से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण से सहायता की प्रार्थना की। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ युद्ध का संकल्प लिया। एक अन्य कथा के अनुसार, सत्यभामा स्वयं युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण के साथ गईं थीं, क्योंकि नरकासुर को यह वरदान प्राप्त था कि केवल एक स्त्री के हाथों ही उसकी मृत्यु हो सकती है। युद्ध के दौरान, जब नरकासुर ने भगवान श्रीकृष्ण को घायल कर दिया, तब सत्यभामा ने स्वयं भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र का प्रयोग करते हुए नरकासुर का वध किया। इसके बाद, श्रीकृष्ण ने 16,100 कन्याओं को नरकासुर के बंदीगृह से मुक्त कराया और माता अदिति के कुंडल और अन्य चुराए गए आभूषण भी उन्हें लौटाए।

नरक चौदस का महत्व

नरक चौदस के दिन नरकासुर के वध और बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव मनाया जाता है। इसे ‘नरक चतुर्दशी’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह कार्तिक मास की चतुर्दशी को पड़ती है। इस दिन को ‘रूप चौदस’ भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन लोग सुबह स्नान करके शरीर की सफाई और सौंदर्य का ध्यान रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन विशेष स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

परंपराएँ और रीति-रिवाज

नरक चौदस के दिन विशेष रूप से सुबह उबटन (चंदन, हल्दी, और अन्य सुगंधित पदार्थों का लेप) का प्रयोग कर स्नान करने की परंपरा है, जिसे ‘अभ्यंग स्नान’ कहते हैं। यह स्नान बुराई और नकारात्मकता से मुक्ति पाने का प्रतीक है। इस दिन घरों की सफाई, दीप जलाना, और पूजा-पाठ भी किया जाता है, जिससे घर में शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।

नरक चौदस का यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आत्मशुद्धि, बुराई पर विजय, और सामाजिक बंधनों को मजबूत करने का प्रतीक भी है।

नरक चौदस, जिसे नरक चतुर्दशी या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है, दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव का दूसरा दिन है। इस दिन विशेष पूजा और अभ्यंग स्नान करने का विशेष महत्व है। यह पूजा बुराई से मुक्ति, आत्मशुद्धि, और शरीर तथा मन की सफाई के प्रतीक के रूप में की जाती है। यहाँ नरक चौदस की पूजा विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है:

1. अभ्यंग स्नान

नरक चौदस के दिन अभ्यंग स्नान (तेल स्नान) को अत्यधिक शुभ माना जाता है। इस स्नान का महत्व पौराणिक कथाओं में बताया गया है, जिसमें कहा गया है कि इस दिन उबटन और तेल से स्नान करने से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

  • स्नान विधि: सुबह सूर्योदय से पहले उठकर, शरीर पर तेल का लेप लगाएं। तेल में तिल का तेल या नारियल का तेल उपयोग करना श्रेष्ठ माना जाता है। इसके बाद उबटन (चंदन, हल्दी, बेसन और गुलाब जल से बना लेप) लगाकर स्नान करें।
  • मंत्र: स्नान करते समय निम्नलिखित मंत्र का जाप करें:
    “ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
    नर्मदे सिंधु कावेरी जलस्मिन सन्निधिं कुरु॥”
2. घर की साफ-सफाई और दीप जलाना

नरक चौदस पर घर की सफाई का विशेष महत्व है। इसे बुराई और नकारात्मकता को बाहर निकालने का प्रतीक माना जाता है। घर की सफाई करने के बाद घर के मुख्य दरवाजे पर दीप जलाएं और तुलसी के पौधे के पास भी दीपक रखें।

3. यमराज के नाम से दीपदान

नरक चौदस को ‘यम दीपदान’ भी कहा जाता है। इस दिन शाम को घर के बाहर मुख्य दरवाजे के पास एक दीपक जलाकर रखा जाता है। इसे यमराज के नाम पर दीपदान माना जाता है, जो अकाल मृत्यु के भय को दूर करता है और व्यक्ति की आयु को बढ़ाता है।

4. नरक चौदस पूजा सामग्री
  • मिट्टी का दीपक
  • तिल का तेल या घी
  • रूई की बत्ती
  • उबटन (चंदन, हल्दी, बेसन आदि)
  • ताजे फूल
  • धूप और अगरबत्ती
  • कुमकुम और चावल
  • मिठाई या नैवेद्य
  • तुलसी के पत्ते
5. पूजा विधि
  • पूजा की शुरुआत: सुबह अभ्यंग स्नान करने के बाद घर के पूजा स्थल पर भगवान श्रीकृष्ण और माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र रखें। इसके साथ भगवान यमराज का भी स्मरण करें।
  • दीप जलाएं: मिट्टी का दीपक जलाएं और तिल के तेल का उपयोग करें। दीपक को यमराज के नाम से समर्पित करें।
  • प्रार्थना: हाथ में फूल लेकर यमराज के मंत्र का जाप करें:
    “ॐ श्रीम यमाय नमः”
    यह प्रार्थना करें कि आपके सभी कष्ट और पाप समाप्त हों और आपके जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे।
  • मंत्र जाप और आरती: भगवान श्रीकृष्ण और माता लक्ष्मी की आरती करें और अंत में प्रसाद वितरण करें।
6. भोजन और प्रसाद

नरक चौदस पर विशेष भोजन बनाकर भगवान को अर्पित किया जाता है। इस दिन कड़वे व्यंजन (जैसे कड़वा तेल, करेला) बनाने की भी परंपरा है। प्रसाद के रूप में मिठाई, फल, और विशेष पकवानों का भोग लगाकर परिवारजनों के साथ बांटा जाता है।

7. रूप चौदस का महत्व

नरक चौदस को ‘रूप चौदस’ भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन को सुंदरता और सौंदर्य से जोड़कर देखा जाता है। महिलाएं इस दिन विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं और अपने रूप-रंग को निखारने के लिए उबटन का उपयोग करती हैं।

निष्‍कर्ष

नरक चौदस का पर्व आत्मशुद्धि और सकारात्मकता का संदेश देता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन उबटन और विशेष स्नान से शरीर और मन की शुद्धि होती है, जिससे नकारात्मकता दूर होती है। साथ ही, दान-पुण्य करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। 2025 में यह पर्व और भी खास रहेगा, जब लोग आत्मसुधार और भक्ति के साथ इसे मनाएंगे। इस पावन अवसर पर शुद्ध विचारों और सद्कर्मों को अपनाकर जीवन में खुशहाली लाएं और रोशनी के इस पर्व को पूरे उत्साह के साथ मनाएं।

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