करवा चौथ पूजा विधि, महत्व एवं सम्पूर्ण व्रत कथा

करवा चौथ व्रत कथा एवं शुभ मुहर्त 2024

करवा चौथ का त्योहार विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए रखा जाता है। यह पर्व हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। आइए करवा चौथ की पूजा विधि, पूजन सामग्री, और कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं:

करवा चौथ पूजा विधि

  1. सुबह सूर्योदय से पहले  महिलाओं को सरगी (व्रत के लिए खाने का भोजन) दिया जाता है। सरगी में फल, मिठाई, सूखे मेवे, और पराठा आदि होते हैं। जो व्रत के दौरान उन्हें ऊर्जा प्रदान करते हैं।
  2. अब व्रत का संकल्प लिया जाता है। जिसमें महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
  3. दिनभर उपवास रखा जाता है, जिसमें न भोजन लिया जाता है और न जलव्रत के दौरान महिलाएं पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ पूजा की तैयारी करती हैं।
  4. शाम के समय महिलाएँ पूरे सोलह श्रृंगार करके पूजा स्थल पर बैठती हैं।
  5. पूजा की थाली में करवा (मिट्टी का या धातु का घड़ा), दीपक, चावल, फल, मिठाई, और सिंदूर रखा जाता है।
  6. इसके बाद karwa chauth vrat katha सुनी जाती है। विवाहित स्त्रियों के लिए इस कथा का श्रवणपान अत्यधिक विशेष महत्व रखता है।
  7. चंद्रमा के निकलने के बाद, महिलाएं चलनी से चंद्र दर्शन करती हैं। और फिर अपने पति का चेहरा देखकर व्रत खोलती हैं।
  8. पति के हाथों से जल ग्रहण करके और भोजन करके व्रत समाप्त होता है।

पूजन सामग्री

  1. करवा (मिट्टी का घड़ा या लोटा)
  2. दीपक, अगरबत्ती, धूप
  3. कुमकुम, सिंदूर, चावल
  4. गेहूं और चावल से भरा हुआ करवा
  5. मिठाई, फल, सूखे मेवे
  6. पूजा की थाली और चलनी 
  7. जल का लोटा
  8. सोलह श्रृंगार की सामग्री (चूड़ियां, बिंदी, महावर, मेहंदी, आदि)

करवा चौथ पूजा कथा

karwa chauth vrat katha से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा है वीरवती की।

वीरवती की कथा

प्राचीन काल में वीरवती नाम की एक सुंदर और धर्मपरायण महिला थी। जिसकी शादी एक राजा से हुई थी। वीरवती ने पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा। लेकिन उसे दिनभर भूख और प्यास के कारण कमजोरी महसूस होने लगी।

उसके भाइयों से उसकी यह हालत देखी नहीं गई। उन्होंने एक चाल चली और एक पेड़ के पीछे दीपक जलाकर ऐसा आभास दिया कि चंद्रमा निकल आया है।

वीरवती ने बिना चंद्रमा का दर्शन किए ही व्रत खोल दिया। जैसे ही उसने भोजन किया, उसे यह सूचना मिली कि उसके पति का निधन हो गया है।

यह सुनकर वीरवती बहुत दुखी हुई और उसने पूरी श्रद्धा से मां पार्वती की पूजा की। उसकी सच्ची भक्ति और तप से देवी पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया और उसके पति को पुनर्जीवित कर दिया।

तभी से करवा चौथ का व्रत स्त्रियों के लिए अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

करवा चौथ पूजा का महत्व

  1. पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए यह व्रत किया जाता है।
  2. यह पर्व पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करता है और उनके बीच प्रेम और विश्वास को बढ़ावा देता है।
  3. करवा चौथ का व्रत सात जन्मों के रिश्ते की मान्यता से जुड़ा हुआ है।
  4. जिसमें स्त्रियाँ अपने पति के दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए कठोर तपस्या करती हैं।

करवा चौथ पूजा का महत्व

करवा चौथ पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 45 मिनट से शाम 07 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। इस समयावधि के दौरान महिलायें व्रत कथा सुनकर चंद्रोदय होने के पश्चात् अपने व्रत का पारण कर सकती है।