बसंत पंचमी का इतिहास और महत्व

बसंत पंचमी का इतिहास और महत्व

क्या आप जानते हैं कि बसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की ही पूजा क्यों की जाती है, पूजा के साथ कौन से विशेष श्लोक पढ़े जाते हैं? भारत त्योहारों का देश है। भारतीय धर्म में हर तीज-त्योहार के साथ अपनी दिलचस्प परंपराएँ भी जुड़ी हुई हैं। यहाँ हर माह कोई न कोई खास व्रत और त्योहार मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन (पंचमी) को मनाया जाने वाला वसंत पंचमी, वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है। यह विशेष अवसर आमतौर पर जनवरी के अंत या फरवरी की शुरुआत में पड़ता है। वसंत पंचमी न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। इस दिन, लोग देवी सरस्वती की पूजा करते हैं और ज्ञान, बुद्धि, रचनात्मकता के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं। यह पर्व समुदायों को एक साथ लाकर खुशी, समृद्धि और नई शुरुआत की भावना को फैलाता है।

ऋतुओं का राजा - वसंत

वसंत पंचमी का त्योहार वसंत ऋतु में मनाया जाता है, जब फूलों पर बहार, जौ और गेहूं की बालियाँ  खिलने लगती हैं, खेतों में सरसों और आम के पेड़ों पर बौर आने लगते हैं तब वसंत पंचमी का त्योहार आता है। इन दिनों हर तरफ तितलियाँ मंडराते हुए दिखाई देने लगती हैं। भारतीय पंचांग में छ: ऋतुएँ मानी गई हैं। इनमें से एक वसंत को ‘ऋतुओं का राजा’ कहा जाता है। यह त्योहार फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है। यह मौसम प्रकृति को खुशनुमा बना देता है।

सरस्वती पूजा  हिन्दू धर्म के अनुसार वसंत पंचमी धार्मिक उत्सव का दिन है। इस दिन देवी सरस्वती का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है तथा उनकी पूजा-आराधना विशेष रूप से की जाती है।

बसंत पंचमी: नई शुरुआत का उत्सव

सर्दी का कंबल हटाकर बसंत अपने हल्के हरे कपड़े पहना देता है, मानो प्रकृति एक नए साल की शुरुआत कर रही हो। इसी खुशी को मनाता है बसंत पंचमी का पर्व। पीले रंग की चादर धरती पर बिछ जाती है, आम के पेड़ों पर बौर आते हैं, और हवा में खुशबू घुल जाती है। इस दिन ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा होती है। स्कूलों में विद्यार्थी पीले कपड़े पहनकर मां सरस्वती को वीणा और पुस्तक अर्पित करते हैं, मन में विद्या प्राप्ति की कामना लिए हुए। पतंग उड़ाना, पीले रंग की मिठाई खाना, रंगोली बनाना – ये सब इस पर्व के रंगारंग उत्सव हैं। बसंत पंचमी हमें सिर्फ प्रकृति का सौंदर्य ही नहीं दिखाती, बल्कि जीवन में नई शुरुआत करने की सीख भी देती है। ठीक उसी तरह जैसे पेड़ सर्दियों में अपने पत्ते गिराकर वसंत में नए पत्ते उगाते हैं, हमें भी पुरानी आदतों को त्यागकर नई चीजें सीखने का प्रयास करना चाहिए। आइए, इस बसंत पंचमी को प्रकृति के साथ मिलकर जश्न मनाएं और ज्ञान की रोशनी से अपने जीवन को उज्ज्वल बनाएं।

“बसंत पंचमी" शब्द का अर्थ

“वसंत पंचमी” नाम दो संस्कृत शब्दों से आया है: “वसंत”, जिसका अर्थ है वसंत ऋतु, और “पंचमी”, जिसका मतलब है चंद्र पखवाड़े का पाँचवाँ दिन। जैसे ही सर्दी कम होती है और फूल खिलने लगते हैं, वसंत पंचमी नई शुरुआत और नवीनीकरण का प्रतीक बनकर आती है। यह खास त्योहार पूरे भारत में, विशेषकर पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है।

बसंत पंचमी क्या है?

वसंत पंचमी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जिसे देवी सरस्वती की पूजा और सम्मान के लिए मनाया जाता है। देवी सरस्वती ज्ञान, बुद्धि, कला और शिक्षा की देवी मानी जाती हैं। यह दिन धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से बेहद खास होता है, क्योंकि यह प्रकृति के नवीनीकरण और नई शुरुआत का प्रतीक है।

बसंत पंचमी – अर्थ

वसंत पंचमी का मतलब एक खुशियों भरा पर्व है, लेकिन यह केवल उत्सव से कहीं अधिक है। यह रबी की फसल की कटाई का संकेत भी है, जिसमें खास तौर पर गेहूं की खेती पर ध्यान दिया जाता है। किसान इस दिन को खेतों के लिए शुभ समय मानते हैं। पीले सरसों के फूल, जो इस दिन के आस-पास खिलते हैं, समृद्धि और प्रचुरता का प्रतीक माने जाते हैं।

इसलिए, वसंत पंचमी का अर्थ सिर्फ प्रकृति और मानव जीवन के बीच गहरे रिश्ते की याद दिलाना नहीं है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण और खेती की कृतज्ञता का प्रतीक भी है। जब लोग इस दिन इकट्ठा होते हैं, तो वे खेती और प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करते हुए इस दिन को मनाते हैं, जो जीवन के लिए अहम हैं।

माँ सरस्वती विद्या की देवी

बसंत पंचमी हिंदू माह माघ, शुक्ल पक्ष के पांचवें दिन (पंचमी तिथि) को मनाई जाती है। इस त्योहार को दक्षिण में श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। बसंत पंचमी का दिन विद्या आरंभ के लिए महत्वपूर्ण है। यह त्योहार देवी सरस्वती के जन्मदिन का भी प्रतीक है, जिन्हें अक्सर शुद्ध सफेद कपड़े पहने एक खूबसूरत महिला के रूप में चित्रित किया जाता है, जो अक्सर सफेद कमल पर बैठी होती है, जो प्रकाश, ज्ञान और सच्चाई का प्रतीक है।

बसंत पंचमी को उत्तर भारत में सरस्वती पूजा के नाम से जाना जाता है। इस दिन सरसों के फूलों के प्रतीकात्मक चित्रण के रूप में लोगों द्वारा पीले कपड़े पहने जाते हैं। इस दिन ज्ञान, भाषा, संगीत, कला और इच्छा शक्ति की देवी देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।

इस पर्व के दिन सिर्फ बच्चे ही नहीं बल्कि स्कूलों, ऑफिसों तथा संगीत और साहित्य की साधना करने वाले साधक भी वसंत पंचमी पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। माना जाता है इस दिन वीणावादिनी, हंस पर विराजमान माता सरस्वती मनुष्य के जीवन में छाई अज्ञानता को मिटाकर उन्हें ज्ञान और बुद्धि का उपहार देकर उनका कल्याण करती है। उन्हें शारदा, वीणावादिनी, बागीश्वरी, भगवती और वाग्देवी आदि नामों से भी जाना जाता है। 

वसंत पंचमी का महत्व

वसंत पंचमी, जिसे सरस्वती पूजा भी कहते हैं, हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्व रखती है। यह त्यौहार ज्ञान, बुद्धि और कला की देवी सरस्वती को समर्पित है। लोग इस दिन शिक्षा, रचनात्मकता और आध्यात्मिक विकास के लिए देवी का आशीर्वाद मांगते हैं।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

धार्मिक दृष्टि से, यह त्योहार देवी सरस्वती की आराधना का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि भगवान कृष्ण ने भी इस दिन देवी सरस्वती की पूजा की थी। इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व है, जो सरसों के फूलों की तरह समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है।

सांस्कृतिक रूप से, यह सामुदायिक मेलजोल और उत्सव का समय है। लोग परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर पूजा-अर्चना करते हैं, वाद्ययंत्र बजाते हैं, पीले कपड़े पहनते हैं और उत्सव की खुशी में शामिल होते हैं।

कृषि और प्रकृति से जुड़ाव

वसंत पंचमी वसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है। यह जीवन में नई ऊर्जा, विकास और प्रचुरता का संदेश देता है। सरसों के खिलते पीले फूल प्रकृति की सुंदरता और समृद्धि का प्रतीक हैं।

2025 बसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, बसंत पंचमी हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पांचवीं तिथि को मनाई जाती है। यह आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के जनवरी या फरवरी के अंत में आती है। यह पंचमी विद्या और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा का पवित्र अवसर भी है।

इसबार हिंदू पंचांग के अनुसार वसंत पंचमी पर्व की शुरुआत 2 फरवरी दिन रविवार को 09 बजकर 14 मिनट होगी। वहीं अगले दिन 3 फरवरी को शाम के 06 बजकर 52 मिनट पर संपन्न होगी। खासतौर पर इस दिन विद्या, ज्ञान और कला की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। 

उदया तिथि के अनुसार, बसंत पंचमी का पर्व 02 फरवरी को मनाया जाएगा. पूजा का शुभ समय सुबह 7:09 से दोपहर 12:35 बजे तक रहेगा।

इस दौरान अगर महाकुंभ के त्रिवेणी संगम पर स्नान का अवसर प्राप्त होता है, तो यह भक्तों के लिए बहुत ही पुण्यकारी रहेगा. 

वसंत पंचमी कैसे मनाई जाती है?

  1. देवी सरस्वती की पूजा:
    इस दिन का मुख्य आकर्षण ज्ञान और बुद्धि की देवी सरस्वती की आराधना है। लोग अपने घरों, मंदिरों और शैक्षणिक संस्थानों में देवी की प्रतिमा स्थापित करते हैं और विधिपूर्वक पूजा करते हैं। देवी को सफेद वस्त्र, कमल का फूल, और वीणा के साथ दर्शाया गया है, जो पवित्रता और शिक्षा का प्रतीक है।
  2. बच्चों की शिक्षा की शुरुआत:
    वसंत पंचमी को छोटे बच्चों के लिए शिक्षा की शुरुआत का शुभ दिन माना जाता है। इस अवसर पर “अक्षर-अभ्यासम” या “विद्या-आरंभम” जैसे अनुष्ठान किए जाते हैं। बच्चे विद्वान बुजुर्गों या पुजारी के मार्गदर्शन में अपने पहले अक्षर लिखते हैं। इसे उनकी शैक्षणिक यात्रा का शुभ आरंभ माना जाता है।
  3. पीले रंग का महत्व:
    पीला रंग वसंत पंचमी के उत्सव में विशेष स्थान रखता है। यह समृद्धि, ऊर्जा और उर्वरता का प्रतीक है। लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं, घरों और मंदिरों को पीले फूलों से सजाते हैं। प्रसाद और भोजन में केसर चावल, मीठा केसर दूध, और अन्य पीले रंग की मिठाइयाँ शामिल होती हैं।
  4. सामूहिक उत्सव:
    वसंत पंचमी के दिन परिवार और समुदाय एकत्रित होकर सामूहिक पूजा और उत्सव मनाते हैं। लोग संगीत और नृत्य के कार्यक्रम आयोजित करते हैं। देवी सरस्वती के भजन और कीर्तन गाए जाते हैं।
  5. पतंगबाजी का आयोजन:
    कुछ स्थानों पर वसंत पंचमी के दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है। यह उत्सव का जोश और नई शुरुआत का प्रतीक है।
  6. खेतों में उत्सव:
    गांवों में किसान खेतों में वसंत ऋतु का स्वागत करते हैं। सरसों के पीले फूलों से सजे खेतों में त्योहार मनाया जाता है, जो नई फसल और समृद्धि का प्रतीक है।

माँ सरस्वती की पूजा विधि

इस दिन देवी माँ सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करके नई कॉपी, पुस्तकें, पेन तथा अन्य पूजन सामग्री माता के सामने रखकर माता सरस्वती का विधिवत पूजन किया जाता है।

तत्पश्चात मौली, मौसमी फल, पुष्प, धूप, दीप, मिठाई, वस्त्र आदि वस्तुएँ माँ के चरणों में अर्पिक करके इस पर्व को मनाया जाता हैं।

स्कूलों में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करके देवी सरस्वती की आराधना तथा प्रार्थना की जाती है। तत्पश्चात प्रसाद वितरण भी किया जाता है।

वसंत पंचमी की कथा

सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्मा जी ने मनुष्य और जीव-जंतु योनि की रचना की। इसी बीच उन्हें महसूस हुआ कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण सभी जगह सन्नाटा छाया रहता है। इस पर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिससे चार हाथों वाली एक सुंदर स्त्री, जिसके एक हाथ में वीणा थी तथा दूसरा हाथ वरमुद्रा में था तथा अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला लिए एक देवी प्रकट हुई।

 ब्रह्मा जी ने वीणावादन का अनुरोध किया जिस पर देवी ने वीणा का मधुर नाद किया। जिस पर संसार के समस्त जीव-जंतुओं में वाणी व जल धारा कोलाहल करने लगी तथा हवा सरसराहट करने लगी। तब ब्रह्मा जी ने उस देवी को ‘वाणी की देवी सरस्वती’ का नाम दिया। वसंत पंचमी के दिन ही ब्रह्मा जी ने माता सरस्वती की उत्पत्ति की थी, यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का जन्मदिन मान कर पूजा-अर्चना की जाती है।

वसंत पंचमी से जुड़े खाद्य पदार्थ

 वसंत पंचमी के उत्सव में विशेष व्यंजनों की अहम भूमिका होती है। ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी रखते हैं। इस त्योहार पर पीले रंग के भोजन का विशेष महत्व है, क्योंकि यह समृद्धि, ऊर्जा और नई शुरुआत का प्रतीक है।

  1. केसर चावल (केसरी भात):
    यह मीठा चावल केसर, चीनी, घी, और मेवों के साथ बनाया जाता है। इसका पीला रंग वसंत ऋतु का प्रतिनिधित्व करता है।
  2. खिचड़ी:
    चावल और दाल के साथ बनी खिचड़ी वसंत पंचमी का एक पारंपरिक व्यंजन है। इसे मसालों और घी के साथ स्वादिष्ट बनाया जाता है।
  3. केसरी शीरा:
    यह सूजी का हलवा केसर, घी, चीनी, और मेवों से तैयार किया जाता है। इसे पूजा के प्रसाद के रूप में भी चढ़ाया जाता है।
  4. मालपुआ:
    यह गहरे तले हुए मीठे पैनकेक होते हैं, जिन्हें चीनी की चाशनी में भिगोया जाता है। यह खासकर उत्तर भारत में त्योहार के दौरान बनाया जाता है।
  5. पीली चने की दाल और सरसों की चटनी:
    इन व्यंजनों का उपयोग पूजा और भोज दोनों में किया जाता है। सरसों की चटनी को पारंपरिक तरीके से बनाया जाता है और यह त्योहार का स्वाद बढ़ाती है।
  6. केसर दूध:
    यह केसर और मेवों के साथ दूध से तैयार की जाने वाली मिठास भरी ड्रिंक है, जो त्योहार के दौरान परोसी जाती है।

वसंत पंचमी श्लोक

वसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की आराधना श्लोकों और भजनों के माध्यम से की जाती है। ये श्लोक ज्ञान, बुद्धि, और रचनात्मकता का आह्वान करते हैं। श्लोकों के माध्यम से देवी के गुणों की प्रशंसा की जाती है और उनके आशीर्वाद की कामना की जाती है।

श्लोक:
“या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वंदिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निशेषजाड्यापहा॥”

अर्थ:
जो कुंद के फूल, चंद्रमा और बर्फ के समान उज्ज्वल हैं, जो सफेद वस्त्र धारण करती हैं, जो हाथों में वीणा धारण करती हैं और सफेद कमल पर विराजमान हैं, जिनकी ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे देवता भी वंदना करते हैं, वह मां सरस्वती हमारे सभी अज्ञान को दूर करें और हमें ज्ञान का प्रकाश दें।

श्लोकों का महत्व

  1. ज्ञान का प्रतीक: ये श्लोक देवी सरस्वती के ज्ञान, संगीत और कला के प्रति उनकी कृपा का आह्वान करते हैं।
  2. भक्ति और श्रद्धा: श्लोकों के माध्यम से देवी के प्रति भक्ति और सम्मान प्रकट किया जाता है।
  3. सकारात्मक ऊर्जा: इनका उच्चारण मानसिक शांति और सकारात्मकता लाता है।

कहां और कैसे सुनाया जाता है

  • शैक्षणिक संस्थानों में पूजा के समय।
  • घरों और मंदिरों में विशेष अनुष्ठानों के दौरान।
  • बच्चे अपनी पढ़ाई शुरू करने से पहले इन श्लोकों का पाठ करते हैं।

वसंत पंचमी के श्लोक त्योहार की आत्मा हैं। ये आत्मज्ञान और सफलता के लिए देवी सरस्वती का आशीर्वाद पाने का पवित्र माध्यम हैं।

महाकुम्भ में बसंत पंचमी का महत्त्व

 महाकुंभ एक ऐसा धार्मिक पर्व है, जहां करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करते हैं। महाकुंभ के दौरान वसंत पंचमी के दिन संगम में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। यह महाकुंभ का चौथा शाही स्नान होगा। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन त्रिवेणी में पवित्र स्नान करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 महाकुंभ प्रयागराज 2025 में इस बार कुल 6 शाही स्नान है. महाकुंभ का शुभारंभ हो चुका है. 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा पर पहला शाही स्नान और आखिरी शाही स्नान 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के दिन होगा और इसी दिन कुंभ का समापन होगा।

3 फरवरी, 2025 को कुंभ मेले में बसंत पंचमी का उत्सव मनाया जाएगा, जो वसंत ऋतु के आगमन और देवी सरस्वती के सम्मान का प्रतीक है। इसी दिन महाकुंभ में चौथा शाही स्नान भी किया जाएगा. महाकुंभ के अवसर पर बंसत पंचमी के दिन किए जाने वाले चौथे शाही स्नान के शुभ मुहूर्त को देखे तों इस दिन स्नान का ब्रह्म मुहूर्त 5 बजकर 23 मिनट पर शुरू हो जाएगा।

बसंत पंचमी पर भारत के इन राज्यों में दिखती है अलग झलक

बसंत पंचमी भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है। पंजाब में वसंत ऋतु को पतंगों के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। लोग पीले कपड़े पहनते हैं और पीले चावल खाते हैं। सिक्ख पीली पगड़ी पहनते हैं। महाराष्ट्र में विवाहित जोड़े अपनी शादी के बाद पहली वसंत पंचमी पर पीले कपड़े पहनकर मंदिरों में जाते हैं। राजस्थान में इस दिन लोग चमेली की माला पहनते हैं। बिहार में बसंत पंचमी के दिन देव सूर्य देवता की प्राचीन प्रतिमा स्थापित की जाती थी। सूर्य देव की इस प्रतिमा को धोया जाता है और उत्सव के साथ सजाया जाता है जो दिन भर जारी रहता है।

बसंत पंचमी का त्योहार क्यों मनाया जाता है?

भारत में हर त्योहार को हम अलग रूप में देखते हैं। बसंत पंचमी को मनाने के लिए भी अलग-अलग मान्यताएँ हैं। धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ज्ञान और वाणी की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने का विधान है। मान्यता है कि इसी दिन मां सरस्वती प्रकट हुई थीं। बसंत पंचमी उत्सव में लोग इस दिन को बड़े उत्साह और जोश के साथ शामिल होते हैं। नई चीजें सीखना शुरू करने के लिए भी यह दिन शुभ माना जाता है।

बसंत पंचमी का महत्व क्या है?

बसंत पंचमी माघ माह की शुक्ल पंचमी के दिन मनाई जाती है। बसंत पंचमी को वसंत पंचमी या श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। बसंत पंचमी होली की तैयारियों की शुरुआत का भी प्रतीक है, जो बसंत पंचमी के 40 दिन बाद शुरू होती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था। देश के कुछ हिस्सों में सरस्वती पूजा इसलिए मनाई जाती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी दुर्गा के घर देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। इस दिन पीले रंग का बहुत महत्व होता है।

बसंत पंचमी के दिन किस महाकवि का जन्मदिन मनाया जाता है?

वसन्त पंचमी हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्मदिवस (28.02.1899) भी है। निराला जी के मन में निर्धनों के प्रति अपार प्रेम और पीड़ा थी। वे अपने पैसे और वस्त्र खुले मन से निर्धनों को दे डालते थे। इस कारण लोग उन्हें ‘महाप्राण’ कहते थे।

 राजा भोज का जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही आता हैं। राजा भोज इस दिन एक बड़ा उत्सव करवाते थे जिसमें पूरी प्रजा के लिए एक बड़ा प्रीतिभोज रखा जाता था जो चालीस दिन तक चलता है |

निष्कर्ष

आप जानते हैं कि बसंत पंचमी एक प्राचीन हिंदू त्योहार है जो वसंत के आगमन और होली जैसे कई शुभ अवसरों की शुरुआत का प्रतीक है। यह दिन भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण महत्व रखता है और इस दिन का इतंजार भारत में बड़ी उत्सुकता के साथ किया जाता है। इस दिन यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि हम प्रकृति से छेड़छाड़ न करें तथा आजकल इस पर्व पर आयोजन को लेकर जबरन चंदा वसूली किया जाता है, जो कि यह सरासर गलत है, अत: इन बातों को ध्यान में रखकर हमें माता सरस्वती का पूजन स्वच्छ मन से करना चाहिए तथा उनके पूजन में पवित्रता को विशेष स्थान देना चाहिए। 

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